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________________ अंगीकार कयुं अने अनुक्रमे केवल ज्ञान उपार्जन करी शाश्वत सुख प्राप्त कयु. ए प्रकारे प्रत्याख्यान उपर तेतली सुत मंत्रीनुं आठमुं दृष्टांत समाप्त थयुं अने ए प्रकारे सामायिक पदनी आठ प्रकारे व्याख्या समाप्त थइ. हवे शास्त्रकार महाराजा आवश्यक पदनी व्याख्या करे छे. जे उभयकाल एटले प्रातःकाले ने सायंकाले अवश्य करवा लायक कार्य ते आवश्यक प्रतिक्रमण कहेवाय छे, तेनुं फल आ प्रकारे कहेलुं छे. आवस्सअण'एएण, सावओ जइवि'बहुरओ'होइ, दुक्खाणमंतकिरियं, काहीअचिरेण कालेण' ॥१॥ भावार्थ:-जो के श्रावक बहु ज पापयुक्त होय, तो पण जो उभयकाल आवश्यक प्रतिक्रमणने करे तो थोडा ज कालने विष दुःखोना नाशने करे छे. मतलब के प्रतिक्रमण करनारा दुःखथी जल्दी मुक्त थाय छे. वळी पण कधुं छे केआवस्स'उभयकालं, ओसहमिव जे करंति उज्जुत्ता, जिर्णविजकहिर्यविहिणा, अकम्मरोगायते हुंति ॥२॥ भावार्थ:-श्रावको उपयोग युक्त थइ सम्यक प्रकारे प्रातःकाले तथा सायंकाले जिनेश्वर महाराजारूपी वैद्ये कथन करेल विधि प्रमाणे औषधना जेम ज जो आवश्यक प्रतिक्रमणने करे छे, ते कर्मरोग रहित थाय छे. जेम कोइक दरदी दरदथी दुःखी थइ सारा वैद्यनी शोधखोळ करी, तेमणे बतावेल विधि प्रमाणे दवानुं भक्षण करी निरोगी थइ दुःखथी मुक्त थाय छे, तेम ज भव्य प्राणि जे छे ते अनादिकालथी भावरोगथी पीडाय छे. ते जिनेश्वर महाराजारूपी उत्तम वैद्यने पामी तेमना कहेल विधिविधान पण प्रतिक्रमणरूप औषधना करवाथी, तेओ भावरोग थकी मुक्त थइ दुःखोना अंतने करी अजरामर पदने पामे छे. . 卐卐yar 49054 4
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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