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________________ चौमासी व्या काठीयार्नु स्वरूप ॥ ख्यान ॥ By ॥३६॥ बवानो नथी, एवं जाणी एक दिवस राजा महा क्रोध पामेलो है एवं स्वरूप देखाडयु, ज्यारे मंत्री राजाने नमस्कार करवा गयो, त्यारे मंत्रीना सन्मुख नहि जोता राजा अवलु मुख करीने बेठो, त्यारवाद खेद पामेल मंत्री नगरनी बहार नीकली मरवानी अभिलाषा करी तालपुट विषनुं मक्षण करी गयो, ते पण अमृत थइ गयु, अग्निमां प्रवेश करवाथी गलाफांसो खावाथी, पर्वतना शीखर उपरथी पडवाथी, शस्त्रथी पण मरण न पाम्यो, मरवाना जेटला जेटला उपायो कर्या ते वधा निष्फल गया, ते चालतो हतो तेना पाछल मदोन्मत्त हस्ति दोड्यो अने तेथी व्याकुल चित्तवाळो मंत्री मोटा खाडामा पडी गयो अने मूर्छा पाम्यो, त्यारबाद चेतना पामीने कहे छे के, हा पोट्टिला ! हुं कोना शरणे जाउं, त्यारवाद दयाने पामी पोटिलदेव प्रगट थयो, ने कह्यु के, हे तेतलीसुत! तने बोध करुं हुं तो पण बोध पामतो नथी, ते कारण माटे में आq कार्य तने दुःख देवानुं कर्यु छे. मंत्रीये कह्यु के अज्ञान दशाथी में जाण्यु नहि, हवे पछी थोडो समय श्रावकपणुं बार व्रत पालीने पछी साधुधर्म अंगीकार करीश, पण राजाने तुष्टमान कर, देवे तेना कहेवाथी तेम कयु तेथी तुष्टमान थयेला राजाये त्या आवी मंत्रीने खमाव्यो, त्यारवाद मंत्री घरे आवी दानादिक करी, श्रावक धर्मनुं प्रतिपालन करवा लाग्यो, बाद व्रत पालवा लाग्यो, एकदा गुरु महाराजने नमस्कार करी पोतानो पूर्वभव पुछ्यो, त्यारे गुरुये का के, महाविदेहे पुंडरिकीणीनगरीने विषे महापद्य राजा हतो, ते गुरु महाराजना उपदेशथी धर्म पाम्यो, ने दिक्षा लीधी, तेमज पूर्वनुं ज्ञान मेलव्युं अने एक मासर्नु अणसण करी महाशुक्र देवलोकने विषे देवता थयो, त्यांथी चवीने तेतली मंत्रीनो पुत्र तेतलीसुत तुं इंहां थयो छे. एवा गुरु महाराजना वचनो सांभळी जातिस्मरण ज्ञान पामी, पोते पूर्वभवने विषे भणेला पूर्वने स्मरण करी शुद्ध चारित्र 195033卐卐卐Ess :559 ।३६॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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