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________________ चौमासी व्याख्यान ॥ 5555555 ते ॥ ३५ ॥ का पिता, कुलवंश, लक्ष्मी, सुख, लज्जा, धर्म त्याग करी, इहलोक परलोक बने बगाड्या, तो पण तेनी मनकामना तो पूर्ण थइ नहि, म्हारा मातापिता लोभी छे, तेथी धन विना आना साथै परणावता नथी, आना पासे धन नथी, तेथी मने मेळववा पैसो उपार्जन करवा मरणना भयने त्याग करी आ त्रीजीवार नाटक करवा वांसना उपर चड्यो, तो पण राजा तुष्टमान तो नथी ने उलटा म्हारा रूपथी मोहित थह मने मेळवावा आ म्हारा स्वामीनो घात करवा चाहे छे. दुरंत विषयोने व्या धिकार छे! म्हारा पापी रूपने धिक्कार छे ! के आ महात्मा इलापुत्रने आवा प्रकारना कष्ट आपवावाली हुं थइ, आवी रीते आत्मनिंदाना साथै वैराग्य वासनावाली थइ, शुद्ध भावना भाववाथी ते नटडीने पण केवलज्ञान थयुं. क्षेत्र देवताये वांसना उपर केवलज्ञान थयेल ठेकाणे सुवर्ण कमलनी रचना करी, तेना उपर केवली महाराजा श्री इलापुत्र बेसी धर्मोपदेश आपवा ठी लाग्या. लोको आवा प्रकारनं अपूर्व आश्चर्य रूप नाटक अने केवलज्ञान देखी बहु आश्चर्यना साथे घणा आनंदने पाम्या, एटलं ज नहि पण विषय विषने विनाश करवावाळी, वैराग्य भरपूर अमृत करता पण अधिक रसिक, इलापुत्र केवल मुनिनी धर्मदेशना सांभळी घणा जीवोये संसार त्याग करी दीक्षा लीधी, घणा जीवोये श्रावकोना बारव्रतोने अंगीकार कर्या, घणा जीवो भद्रिक थया अने भगवान इलापुत्र केवली महाराजा पृथ्वी उपर विचरी घणा जीवोने तारी शिवशय्याने विषे आरूढ थया. ए प्रकारे परिज्ञाने विषे इलापुत्रनुं सातनुं दृष्टांत पूर्ण थयुं. श्री सी र तेर काठीचानुं स्वरूप ॥ हवे परिहरणीय वस्तुना त्याग करवा माटे तेतलीपुत्रनु आठमुं दृष्टान्त कहे छे. तेतलीपुरनगरने विषे कनकरथ नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने तेतलीपुत्रमंत्री हतो, ते नगरने विषे वसनार श्रेष्टिनी पुत्रि पोट्टिलाने विषे मोह पाम्यो अने रू ॥ ३५ ॥ L
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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