SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कीडो. हा हा ! मने धिक्कार छ ! धिक्कार छे ! के में वीतरागनी आण लोपी, विषयाधिन थयेला में कुलमर्यादाने त्याग करी, नीच मनुष्योना अंदर मल्यो, धर्मथी भ्रष्ट थयो, पापकर्ममा रक्त थयो, विषयवासनामां म्हारी शुद्धबुद्ध गइ, म्हारुं ज्ञान दरीयामा ड्रब्यु, इहलोक परलोकनो भय विसार्यों, नरक तिर्यच निगोदादि दुष्ट गतिनो भागीदार थयो ने में अनंत संसार उपार्जन कर्यो. कोटी भवोने विषे पण म्हारो आत्मा उंचो आवनार नथी. धिक्कार छे विषयोने! धिक्कार छ मने ! धिक्कार छे संसारने ! धिक्कार छ म्हारा जेवानी कुबुद्धिने! हा हा! म्हारी रौरवगति थवानी छे, दुनियामा सर्व स्वार्थ वृत्तिवाळा छे, हुँ कोइनो नथी, कोइ म्हारं नथी, आवी रीते वैराग्य श्रेणिथी घणा कर्म क्षीण करी, क्षपक श्रेणिपर आरोहण थइ, चार घाती कर्मने क्षीण करी, महात्मा इलापुत्र वांस उपर ज केवलज्ञान पाम्या. हवे राजानी कुबुद्धिथी लोको राजानी निंदा करवा लाग्या, ते सांभळी राजा लज्जा पाम्यो, मनमा विचार करवा लाग्यो के मने धिक्कार छे! म्हारा घरमा अनेक गुण युक्त रूपवती राणी छे, तो पण विषय मूढ थयेला मने तृप्ति न थइ माटे खरेखर हुँ बहुल कर्मी छु, आवी रीते वैराग्यवासना वासित थवाथी राजाने केवलज्ञान प्राप्त थयु. हवे राणी पण विचार करवा लागी के राजाने म्हारा जेवी देवांगना समान राणी छे, तेने पण त्याग करी, नीच एवी आ नटडीनी वांछा करे छे! अरेरे मोहनो महिमा महा कठोर छे! सती म्हारा जेवीने छोडी राजा नटडीनी इच्छाने करी कुल मर्यादाने त्याग करी विषयी राजा जुदा ज प्रपंचमां रमे छे, तो धिक्कार छ संसारने ! आवी रीते भावना भावता राणीने पण केवलज्ञान प्राप्त थयु, त्यारबाद नटडी विचारे छे. हा हा, महा अनर्थनी वात छे. हुं रांड पापणी नीच कुलमा उत्पन्न थया छता अति रूपाली थइ. म्हारा रूपे आ बिचाराये माता
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy