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________________ 5 सी मा इलाची कुमारने कघुं के, आ वखते म्हारुं चित्त व्यग्र होवाथी हुं बराबर नाटक जोड़ शकेल नथी, माटे फरीथी नाटक कर, क एटले हुं संतुष्ट थह तने बहु दान आपुं. राजाना वचनथी दाननी अभिलाषावाळो इलाची पुत्र फरीथी पावडीयो पहेरी वांस उपर चडथो अने गगनमां उछली उछली अप्रमत्तपणे आगल पाछलनी खीलीयोमां पावडीयोना छिद्रो भरावी, विविध प्रकारे नाटारंभ करी परिश्रम पामेलो राजा पासे दान लेवा आव्यो, पण नटवीमां जेनुं चित्त लुब्ध थयुं छे, तेवा राजाये कहां के में बराबर नाटक जोयुं नथी, माटे एकवार फरीथी नाटक कर एटले व्हारा दारिद्रने दूर करूं. आ वखते समग्र लोको समजी गया के, राजानी बददानत नटवीना उपर थह छे; तेथी आ विचाराने दान नहि आपता तेने मारवानी इच्छा करे छे, आवी रीते अंतःकरणथी राजाने सर्व लोको धिक्कारखा लाग्या. तथा राजाये आप्या शिवाय आपवानी इच्छावाला लोको पण दान आपी शक्या नहि. इलाची कुमार हताश बन्यो, मुख उपर शोक संतापनी छाया छवाह गर, ते वखते तेने वरवानी इच्छावाली नटडी कहे छे के हे स्वामिन्! शुं जुवो छो. त्रीजीवार नाटक करो के राजा जल्दी दान आपे, अने हुं पण त्हारुं पाणिग्रहण करी मा त्हारी मन कामना पूर्ण करूं, आवी रीते नटडीना उत्साह भरेला वचनथी सतेज थयेलो इलायची कुमार फरीथी त्रीजीवार ढाल तरवार लइ, पगमां पावडीयो हेरी नाटारंभ करवा लाग्यो अने नाटकणी पण अति शोरजोरथी ढोल बजावी, गानतान करी शूरातन चडाववा लागी, ते अवसरे वांस उपर नाचता नाचता इलाचीकुमारे नजीक भागमां रहेला, एवा कोइक स्व गृहस्थना घरने विषे रूप लावण्यना समुद्र समान, सुंदर नवयौवन अवस्थावाली, तेमज पोताना चंचल नेत्रोने चौतरफ फेलावनारी, तथा मधुर वचनोना वरसादने वरसावती, साक्षात् देवांगना समान, कोइ एक स्त्री घणा हावभावपूर्वक मुनि षां 455
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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