SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौमासी 卐ary काठीयार्नु स्वरूप ॥ रूयान॥ '卐卐卐y卐卐! भावार्थ:-भ्रकुटीरूपी धनुषथी आकर्षण करीने खेंचीने मुकेला एवा, तथा कान पर्यंत पहोंचेला एवा, तथा धैर्यवंतना धैर्यने पण नाश करनारा एवा, स्त्रीयोना दृष्टिरूपी बाणो ज्यां सुधी पडता नथी, त्यां सुधीज प्राणियो समार्गमा रही शके छ, तथा त्यां सुधीज इंद्रियोने पण दमन करी शके छे, तेम ज लजाने पण त्यां सुधीज धारण करे छे, तेम ज विनयने पण | त्यां सुधी जराखी शके छे, पण स्त्रीयोना दृष्टिबाणना सन्मुख आव्यो एटले उपरोक्त तथा बीजा तमाम गुणो नाश पामी जाय छे, कहेवानो सारांश ए छे के, स्त्रीयो जे पुरुषो प्रत्ये कटाक्ष नेत्रवाण फेंके छे, तेना विनय, विवेक, धैर्य, मति, बुद्धि, पराक्रम सर्वे हणाइ जाय छे अने तेथी केवल स्वीयोना ज पाशमां पडे छे, हवे आवी रीते सारी दुनियाना जीवो ज्यारे स्वीयोना मोहपाशमां मुंझाइ जाय छे त्यारे जेने पूर्व भवनो गाढ स्नेह रहेल छे, एवो इलाची पुत्र उत्तम कुलमा उत्पन्न थया छतां पण नाटकणीने देखी मोह पामे तेमां कांइ पण आश्चर्य नथी, नाटकणीने ज विषे जेनुं चित्त तन्मय बनी गयेल छे, एवा इलापुत्रने तेना मित्रोये कयु के, घरे चाल, परंतु ते तो पथ्थरना पेठे त्यां ज चोटी रहेल छे, मित्रोये वारंवार कहेवाथी पण त्यांथी एक पगलं मात्र चाल्यो नहि ने निश्वास नाखी बोल्यो के, जो तमो म्हारा साचा मित्रो हो तो ते नाटकणी मने मेलवी आपो, अन्यथा म्हारे मरणतुं शरण छ, मित्रोये तेने तेम करवाथी अनेक प्रकारना अपवादो बताव्या, परंतु ते सर्व राखना ढगलाना अंदर घीना होमवा जेवू थयु, एटले मित्रोये घरे पहोंचाडवा का के, हमो हरकोइ प्रकारे मेलवी आपीशु पण तुं घरे चाल, एम कही घरे लइ गया. त्यां पण काइ पण नहि बोलता, अन्न पाननो त्याग करीने बेठो, तेना माता पिताये बहु प्रकारे पुछवाथी नाटकणी मने परणावी आपो. एबुं बोल्यो, तेथी मातापिताये कयु के, हे पुत्र ! कुलवान शेठी
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy