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मुंडं शिरं वदनमतदनिष्टगंध, भिक्षाटनेन भरणं च हतोदरस्य ।
गानं मलेन'मलिनं गतसर्वशोभ, चित्रं तथापि मनसो मदनेऽपि वांछा ॥१॥ भावार्थः-कामदेवनी बलीहारी छे, कारण के जे विविध प्रकारना भोजन करनाराना, नाना प्रकारना वस्त्रालंकारने धारण | करनाराना, पुष्पगंधमाल्यादिकना शोखीनोना, तेम ज इंद्रियो प्रबल होय तेना, मनने विषे तो विषयवांछना उत्पन्न करे छे, तो तेम बनी शकवा संभव रहे छे, कारण के उपरोक्त तमाम विषय वृद्धि करनाराज छे, परंतु त्यागीयोना मनमांजे विषयवांछा थाय छे, तेज विचारवा लायक अने आश्चर्य उत्पन्न करनार छे, कारण के मस्तक मुंडन कराव्यु होय, वदन कहेता मुख दुर्गधथी भरेलु होय तेमज भिक्षा मागी अंतप्रांत लुखो सुको आहार करवाथी जेनुं पेट पातालमा पेसी गयुं होय तथा शरीर पण | महामलीन मलथी मलीन थयेलं होय, तो पण तेवा त्यागीयोना चित्तने विषे विषय वांछा उत्पन्न थाय छे, ते ज आश्चर्य थाय छे.
वली का छे के, कामी पुरुषो धैर्यने धारण करी शकता नथी. वली जेणे स्त्रीयोने नहि देखेल होय तेने स्त्रीयोने देखवानुं मम थाय छे अने देख्या पछी आलिंगन करवानुं मनथाय छे अने आलिंगन कर्या पछी पण छुटा पडवानी इच्छा थती | नथी, आवी रीते अन्योअन्य लपटाय छे, तेमां पण स्त्रीयो तो, पूर्ण रीते केवल पुरुषोने उन्मत्त ज बनाउँछे, कडं. छे केसम्मानें तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेंद्रियाणां, लजां तावद्विधत्ते विनयमपि समलिंबते तावदेव। भ्रूचापाकृष्टमुक्ता श्रवर्णपथंगतानीलपक्ष्माण एते, यावल्लीलावतीनांनहार्दिधृतिमुषो दृष्टिबाणा:पतंति ॥१॥
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