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चौमासी व्याख्यान ॥
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जेम पोताना तरफ खेंचेछे, तेमज स्त्रीयोने स्पर्श करनार प्राणीना पराक्रमने स्त्रियो तत्काल हरण करी ले छ, तथा| ते || तेर तेमना साथे मैथुनादिकना सेवन करवाथी वीर्यने पण हरण करी ले छे, माटे ज शास्त्रकार महाराजाओए स्त्रीने प्रत्यक्ष राक्षसी काठीयार्नु कहेल छे, ते उपमा बराबर घटी शके छे, कारण के राक्षसणीने जे माणस देखे छे तेनुं हृदय मुंझाइ जाय छे अने भक्षण स्वरूप॥ करवा माटे राक्षसणी स्पर्श करे के तुरत माणस निस्तेज थइ पराक्रमहीन थइ जाय छ, वली जे व्यंतरीयोनी जाति रखडती होइ मनुष्योने नजरे पडे तो तेने विषयवासनाने विषे ललचावी तेना साथे मैथुन सेवी तेनुं कालजें उतरडी खाय छे, तेवी जरीते स्त्रीने पण तेवी ज समजवी, जे माटे कयुं छे के:मदिरातो गुणज्येष्ठा, लोकद्वयंविरोधिनी'। कुरुते दृष्टमात्रापि, महिलाग्रथिलं जगत् ॥१॥
भावार्थः-मदिरा कहेता दारुना गुण करता पण जेने विशेषपणुं रहेलं छे, अर्थात् मदिरा करता पण केफ तथा उन्मत्तपणुं जेने विषे घणुं ज रहेलुं छे, एवी स्त्री जे ते इहलोक तथा परलोक बन्नेने विरोध करवावाळी छे, बन्ने भवोने बगाडवावाळी छे, जेम मदिरा पान करनार माणस गांडो थइ इहलोकने बगाडी परलोके दुर्गतिनो भोक्ता थाय छे, तेम ज | स्त्री पण मनुष्योने आ भवमां दिवाना बनावी परलोके कुगतिमा लइ जइ नाखे छे, वली मदिरानुं पान करी माणस उन्मत्त | बने छे, तेमां आश्चर्य नथी, कारण के तेतो केफी वस्तु छे ज, परंतु स्त्री तो पोते पोताने देखनार जगत्ने तत्काल उन्मत्त बनावी दे छे, तेज आश्चर्य छे अने तेथीज स्त्रीने मदिराना केफ करता पण विशेष उन्मत्त कहेल छे, कारण के स्त्रीयो पोताना मोहपाशमां सारा जगतने जकडावी दे छे, कयुं छे के:
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