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________________ 訂听 印騙財騙阿骗网 अवस्था पामी, एकदा प्रस्तावे ते नाटकीया लोको ते पुत्रीने लइ ते ज नगरने विषे आवी नाटक करवा मांड्या, ते देखीने पूर्व भवना स्नेहथी इलापुत्रने ते नाटकणीना उपर गाढ राग थयो अने नाटकणीने पण इलापुत्र उपर तेवोज रागमोह | थयो. प्रतिकूल जातिमा उत्पन्न थया छतां पण बन्ने जण अरसपरस तीव्र रागमा रंगाणा. कर्तुं छे केयं दृष्ट्वा वर्द्धते प्रीतिः, क्रोधश्च परिहीयते, स विज्ञेयो,मनुष्येण, एष मे पूर्वबांधवः ॥१॥ भावार्थ:-जेने देखीने प्रीति वृद्धि पामे छ, तेमज क्रोध नाश पामे छे, ते देखी माणसोये जाणवु के, आ म्हारो पूर्व भवनो बांधव छ वळी पण कयुं छे के:यं दृष्ट्रा वर्द्धते क्रोधः, स्नेहश्च परिहीयते, स विज्ञेयो,मनुष्येण एष मे पूर्वशत्रुकः॥२॥ भावार्थ:-जेने देखी क्रोधनी वृद्धि थाय छे, तेम ज स्नेहनी हानि थाय छे, तेने देखी माणसोये जाणवू के, आ म्हारो पूर्व भवनो शत्रु छे. - आवी रीते धिक जाति एवी नाटकणीने विषे पण उत्तम जातिवालो इलापुत्र विषयवासना धारण करवा वालो थयो, कारण के श्रीमान् शास्त्रकार महाराजाये स्त्रीयोने महा मोहना स्थानने कहेल छे. का छे के-, दर्शनात्'हरते चित्तं,' स्पर्शनात् हरते बलं। संभोगात् हरते वीर्य नारी प्रत्यक्षराक्षसी ॥१॥ भावार्थ:-स्त्रियोना दर्शन करवाथी एटले स्त्रीयोने देखवाथी ज, ते देखनाराना चित्तने हरण करे छ, अर्थात् विषयवासना उत्पन्न करे छ, तथा स्पर्श करवाथी पण बल पराक्रमने हरण करी ले छे, जेम लोहचुंबक लोखंडने आकर्षण करी 蜀川町 听
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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