SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. 卐卐卐卐卐卐। अनर्थना खाडामां लइ जइ फेंके छे, इह लोक परलोक बन्नेने डूबावी संसारमा दीर्घकाल पर्यटन करावे छे, माटे ज कामशास्त्रना लाख लोकना सारने पांचाल नामना पंडित राजाने फक्त पांच ज अक्षरमां बताव्यो. राजा तेओना ग्रंथोनो भावार्थ जाणी खुशी थयो अने तेओने बहु द्रव्य आपी विदाय कर्या. ते ज प्रकारे थोडा अक्षर अने बहु अर्थवारों द्वादशांगी रूप संक्षेप सामायिक पांचमुं जाणवू. ५ ___हवे छटुं निष्पाप कर्म आचरवा माटे महात्मा धर्मरुचि मुनि महाराजानुं दृष्टांत देखाडे छे. दृष्टान्तो यथा. चंपा नामनी नगरीने विषे सोमदेव, सोमभूति, सोमदत्त, नामे त्रण भाइयो वास करता हता, ते त्रणेने अनुक्रमे नागश्री, यज्ञश्री, भूतश्री, नामनी त्रण स्त्रीयो हती. हवे ते त्रणे भाइयोनी घरनी व्यवस्था एवी हती के, एक एक दिवसे सर्वे जणाये एक ज घरे जमवू, अने प्रत्येक दिवसे जेनो वारो होय, ते स्त्रीये रसोइ करवी, आवी रीते सुखे करी दिवसो व्यतीत थवा लाग्या, एक दिवसे नागश्रीनो वारो हतो, तेथी तेणे अजानता कडवा तुंबडार्नु शाक बनाव्यु, तेमां सारा प्रकारनो मशालो नाख्यो. अने ते पूर्ण रंधाइ रह्या पछी कांइक परीक्षा करवा तेणे ते चाख्यु, तेथी तेने महा कडवू जाणी, एक बाजु मुकी | राख्यु अने विचारवा लागी के, मने घणा द्रव्यनो व्यय आना अंदर थयेल छे, माटे ते नाखी पण केम देवाय. तेम ज पोताना माणसोने खावा पण केम अपाय. तेम करवाथी पोतानी चतुराइ विगेरेनी निंदा थाय. आQ जाणी ते शाक राखी मुकी बीजु शाक रांधीने पोताना माणसोने भोजन कराव्यु, त्यारबाद धर्मघोषसूरीश्वर महाराजना शिष्य महात्मा, निरंतर
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy