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चौमासी व्या
काठीयार्नु स्वरूप ॥
॥२७॥
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कादिना दारुण दुःखोनो भोक्ता थाय छे, अने मानुष्य भवने विषे पण दिनदुस्थित दारिद्रयादि अनेक दुर्गुणोने, तेम ज सरोगी | कुरूपी तथा अनेक प्रकारनी व्याधियोथी व्याप्त थइ पापकर्मना धंधाने करी वली नरकने विषे जाय छे, तेम ज उत्तरोत्तर
दुःखद भवोने ज अंगीकार करे छे, माटे ज उपरोक्त करणिने जलांजलि आपवा, सद्गति पामवा, तमाम जीवोनी दया पाळवार्नु | फरमान करे छे आवी रीते कपिल नामना पंडिते फक्त पांच ज अक्षरमा लाख श्लोकनो सार धर्मशास्त्रना सारांशभूत बताव्यो.२ |
त्रीजो बृहस्पति नामनो पंडित कहे छे के, कोइनो विश्वास करवो नहि, कारण के आ हडहडता कलिकालना साम्राज्यने विषे जीवो, असत्यवादी, प्रपंची, मायावी, छलभेदी, विश्वासघाती, देवगुरु धर्मना द्रोही, सज्जनोनी निंदा करनारा, मुखना मीठा अने परिणामना धीठा, मनना मेला, घणा जीवो होय छे अने एवाओनो विश्वास करनारा माणसो मराय छे, कुटाय छे, दंडाय छ, भंडाय छे, निंदाय छ, संडोवाय छे, वगोवाय छे, बुद्धिबळ लक्ष्मी औश्वर्य थकी हीनता पामी, परलोक तेम ज | आलोकनो बगाडो करी संसारमा परिभ्रमण करवावाळा थाय छे. माटे ज बृहस्पति नामनो पंडित लाख श्लोकना सारने नीतिशास्त्रना सारभूत, फक्त पांच अक्षरमा जणावे छे के, कोइनो विश्वास नहि करता जीवोये चेतीने चालवू के, पोताना आत्माने कोइपण पश्चातापना भागीदार थइ दुःखी थवा समय आवे नहि. ए प्रकारे नीतिशास्त्रनो सार कह्यो. ३
हवे चोथो पांचाल नामनो पंडित कहे छे के स्वीओने विषे कोमळपणुं धारण कर, युक्त छे, कारण के स्त्रीयोनो अंत लेवाथी कांतो स्त्रीयो आपघात करे छे, अगर घरनी वस्तुओ बीजाने आपी दे छे, अगर बालवच्चा धणी विगेरेनो नाश करे छे, अगर परने आधिन थाय छे, अथवा स्वपरना आत्माने बहु ज बोजामा उतारे छ अने दुनियामां कोइपण न करे, तेवा
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