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________________ FFERESTLty! बृहस्पतिरविश्वासः, त्रीजो बृहस्पति नामनो पंडित कहे छ, के दुनियामां कोइनो विश्वास करवो नहि, कारण के विश्वास करवाथी माणसो | दुःखनी परंपराने पामे छे, आवी रीते लाख श्लोकनो सार फक्त चार ज अक्षरमां बृहस्पति नामना पंडिते राजाने कह्यो. पांचालः स्त्रीषु मार्दवं ॥१॥ चोथो पांचाल नामनो पंडित कहे छे के, स्त्रीयोने विषे कोमलता धारण करवी, पण काठीन्यवृत्ति राखवी नहि, कारण के तेम करवाथी घणा प्रकारना अनर्थों थाय छे, ने कोमलताथी लाभ थाय छे, ए प्रमाणे लाख श्लोकनो सार फक्त पांच ज अक्षरमा पांचाल नामना पंडिते राजाने कह्यो. पहेला आत्रेय नामना पंडिते जे वर्णन कर्यु के, प्रथमर्नु भोजन पच्या पछी ज खावु ते बराबर छे. केटलायेक वे समज जीवो वगर विचार्ये खाधा ज करे छे, तेम करवाथी अजीर्ण थाय छ, अने सर्व रोगोनो माबाप ज अजीर्ण छे. अजीर्णथी ज जीवोने तमाम रोगो प्राप्त थाय छ, ने तेम करवाथी पीडा, पैसानी हानि, आर्तध्यान, अने परलोकने विषे खराब गति थाय छे, माटे सुज्ञ जीवोये प्रथमर्नु अन्न पच्या विना भोजन करवू ज नहि. आ प्रकारे वैदकशास्त्रना लाख श्लोकनो सार आत्रेय नामना पंडिते पांच अक्षरमां बताव्यो. १ बीजो कपिल नामनो पंडित सर्वे जीवोने विषे दया धारण करवायूँ कहे छे, ते पण सत्य छे. जे जीवो जीवोनो घात करे छे, तेने मारे छ, पीडे छे, ते मलीन पापकर्मने बांधी इहलोकने विषे अपयश धिक्कारने पात्र थइ, परलोकने विषे तिर्यच नर | ASMgy卐yyyy)
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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