SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौमासी व्याख्यान ॥ काठीयार्नु स्वरूप॥ राजा बोल्यो के, ते चारे ग्रंथो बहु ज मोटा छे माटे थोडा समयमां म्हाराथी ते सांभळी शकाशे नहि, कारण के राज्य कार्यना महान् व्यवसायने लइने ते लांबाकाळ सुधी म्हाराथी सांभळवानी अवकाश मेलवी शकाय तेम नथी, माटे तेने संक्षेपीने लावो. राजाना आवा वचनथी पंडितोये पोणो पोणो लाख श्लोकना ग्रंथो कर्या, पण राजाये ना पाडी. पचास पचास हजार, पचीस पचीस हजार, पांच पांच हजार, एक एक हजार, छेवटे एक एक श्लोक करीने लाववाथी पण राजाये हजी पण समास करवानुं कहेवाथी, चारे पंडितोये पोताना नाम अने चार लाख श्लोकना प्रमाणवाळा ग्रंथोनो सार एक ज अनुष्टुप् श्लोकमां आवी जाय ते प्रकारे बनावी नीचे मुजब संभळाव्यो... जीर्णे,भोजनमात्रेयः, कपिलः प्राणिनां दया, बृहस्पतिरविश्वासः, पांचालः स्त्रीषु मार्दवं ॥१॥ भावार्थ:- । । जीर्णे भोजनमात्रेयः, ___ आत्रेय नामनो पंडित कहे छे के, प्रथम भोजन करेल होय ते पच्या पछी ज बीजीवार भोजन करवं. शिवाय कर, नहि. आवी रीते लाख श्लोकनो सार आत्रेय नामना पंडिते फक्त पांच अक्षरमा कहो. कपिलः प्राणिनां दया। बीजो कपिल नामनो पंडित कहे छ के सर्वे प्राणियोना पर दया करवी. कोइपण जीवनी हिंसा करवी नहि आवी रीते लाख श्लोकनो सार पक्त पांच ज अक्षरमा कपिल नामना पंडिते राजाने करो. *卐yyyyyyyy.! ॥२६॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy