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________________ % चौमासी व्याख्यान ॥ 計听印騙財 20 काठीयानुं ॥२५॥ SNE555555~ तेथी चोरे तेने कर्दा के हे मुनि! तुं धर्मने शीघ्रताथी म्हारा पासे कहे. अन्यथा आ खड्गवडे करी आ स्वीना मस्तकना पेठे त्हारु मस्तक कापी नाखीश, त्यारबाद तेने योग्य सत्पात्र जाणी समासथी टुंकामां ज उपशम १, विवेक २, संवर ३, ए त्रण पदोने बोली नमस्कार पद बोली मुनि आकाश मार्गे चाल्या गया. हवे साधुये कहेला त्रण पदने सांभली चिलाती पुत्र विचार करवा लाग्यो के उपशम आ पदनो अर्थ शुं थाय छे तेनी कांइ समजण पडती नथी. वली वीजीवार विचार करवा लाग्यो के, उपशम एटले क्रोधनी उपशांति ते मने हालमा क्यां छे ? कारण के महाक्रोधी माणस होय छे ते ज म्हारा | पेठे पोताना हाथमा यष्टि, मुष्टी, बाण, शक्ति, तोमर, मुद्गर, त्रिशूल, खड्ग विगेरे राखे छे, तेथी ते क्रोधी कहेवाय छे, माटे म्हारा पासे तो खड्ग छे. वास्ते मने क्रोधनी शांति नथी, माटे ज क्रोधने शांत करी म्हारे उपशमी थq जोइये. आवी चितवना करी हाथमांथी खड्ग फेंकी दीधुं वळी फरीथी विचार करता तेणे विवेकनो अर्थ जाण्यो. कृत्य अने अकृत्य तेने अंगीकार करवापणुं एटले के कृत्यनो आदर करवो, अकृत्यनो अनादर करवो. तेनुं नाम विवेक कहेवाय छे, अने एवा | प्रकारना विवेकथी धर्म थइ शके छे. तो ते विवेक मने क्यां छे ? कारण के म्हारा हाथमां दुष्टपणाने सुचवनारुं लोही 5 खरडित स्त्रीनुं मस्तक रहेढुं छे. माटे ज हुं महा अविवेकी छु. वास्ते ते म्हारे दूर करवू जोइये, एम चिंतवी ते मस्तकने फेंकी | | दीधुं. वळी पाछो संवरना अर्थने चितववा लाग्यो. के संवर एटले शुं ? मन अने इंद्रियोनो रोध करवो, पाप मार्गने विषे जता तेमने अटकाववा तेनुं नाम संवर कहेवाय. ते तो म्हाराथी दूर छे, हुं तो आश्रवथी भरपूर भरेल छु, माटे ज म्हारे आश्रवनो त्याग करी संवरनो आदर करवो जोइये, आवी चिंतवना करता तेमणे ते ज मुनिनी जग्याये काउस्सग्ग ध्याननुं ॥२५॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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