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________________ 卐卐卐SE卐33 | पामी धनने छोडी दीधुं अने तमाम लोको चोतरफ नासवा मांडयां. कोटवाल विगेरेने धन हाथमा आववाथी ते धन लइ पाछा फर्या, पण धन सार्थवाह तो पांचे पुत्रो सहित चिलातीनी पाछळ चाल्यो. हाथमा तरवारने धारण करेला धनने पांचे पुत्रो सहित पोतानी पाछळ आवतो देखी तरवारथी कन्या- माथु कापी धड तेनुं त्यां ज पडतुं मुकी हाथमां केवल सुसुमार्नु माथु राखी आगळ चालवा मांडयो, त्यारवाद धन त्यां आव्यो. मस्तक विनानी सुसुमाने देखी थोडीवार विलाप करी श्रेष्टी पुत्रो सहित त्यांथी घर तरफ पाछो फर्यो, त्यारवाद ते भगवान श्रीमन्महावीर महाराजा पासे धर्म श्रवण करवा आव्यो अने तेने करुणाना समुद्र एवा भगवाने देशना आपी. एष' मे' जनयिता जननीयं, बान्धवः परिजनः स्वजनो वा। द्रव्यमेतदितिजातममत्वो, नैव,पश्यति, कृतान्तवशं स्वम् ॥१॥ 'भावार्थ:-आ म्हारो पिता छ, आ म्हारी माता छ, आ म्हारो बंधव छ, आ म्हारो परिवार छ, आ म्हारो स्वजन वर्ग छे, आ म्हारं द्रव्य छ, ए प्रकारे तमाम वस्तुओ विषे ममत्व भावने धारण करनारो मोही जीवडो पोताना आत्माने मरणने शरण थयेलो देखी शकतो नथी.. • आवा प्रकारनी वीतराग भगवाननी वाणीने सांभली प्रबोध पामी धन सार्थवाहे दिक्षा लीधी अने तीव्र तप तपी स्वर्गने | विषे गयो, तेना पांचे पुत्रोये सम्यक् प्रकारे श्रावक धर्मने ग्रहण कर्यो. त्यारवाद सुसुमाना मस्तकने हाथमा राखवाथी जेनुं शरीर लोहीथी खरडायेल छे एवा चिलाती पुत्रे आगल चालता एक मुनिने मार्गने विषे काउस्सग्ग ध्याने रहेला देख्या, 24-94544-4999
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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