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________________ एतैस्तीधर्महापुन्यं, यः कुर्यादभिसेचनं / अभक्षणं च मांसस्य, न च तुल्यं युधिष्ठिर!॥ 8 // भावार्थ:-कृष्ण महाराज युधिष्टिरने कहे छे के, एक माणस प्रभास, पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गंगा, सरस्वती, वेदिका 143294.943933 मांस भक्षणनो त्याग करे तो, हे युधिष्ठर ! ते बराबर कदापि काले थइ शकता नथी. अर्थात् उपरोक्त पुन्य करतां मांसने त्याग करवानुं महापुन्य कथन करेल छे. तिलसर्षपमानं तु, मांसं यो भक्षयेन्नरः / स याति नरकं घोरं, यावच्चंद्र-दिवाकरौ॥९॥ भावार्थ:-जे माणस तल अने सरसवना दाणा प्रमाण जेटलं पण मांसनुं भक्षण करे छे, ते ज्यांसुधी चंद्र-सूर्य | तपे छे, त्यांसुधी घोरातिघोर नरकने विषे जइने वास करे छे. केदारे यः जलं पीत्वा, पुन्यमर्जयते नरः। तस्मादष्टगुणं प्रोक्तं, मद्यामिषविवर्जने // 10 // भावार्थ:-केदारने विष पाणिर्नु पान करी जे माणस पुण्यने उपार्जन करे छे, तेनाथी आठगणुं पुन्य मद्य मांसने त्याग करवानु कहेलुं छे. ध्रुवं प्राणिवधो यज्ञे, नास्ति यज्ञस्त्वहिंसकः। ततोऽहिंसात्मक कार्यः, सदा यज्ञो युधिष्ठिर // 1 भावार्थ:-निश्चय यज्ञने विषे प्राणियोनो वध थाय छे अने अहिंसा विनानो यज्ञ नथी. एटले यज्ञमां दया होती नथी, ते कारण माटे निरंतर दयामय यज्ञने करवो. आवी रीते कृष्ण महाराज युधिष्ठिरने कहे छे. 153EMEE 卐卐:
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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