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________________ चौमासी व्याख्यान / काठीयार्नु स्वरूप॥ // 21 // *卐卐SSESS卐. यावन्ति पशुरोमाणि, पशुगात्रेषु भारत / तावद्वर्षसहस्राणि, पच्यन्ते नरके नरः॥३॥ भावार्थ:-हे भारत ! पशुना शरीरने विषे जेटला रुंवाडा छे तेटला हजार वर्ष मांस भक्षण करनार नरकमां जइ दुःखो भोगवनार थाय छे. शुक्रशोणितसंभूतं, मांसं ये स्वादते नराः। ते जनाः कुरुते शौचं हसंते तत्र देवताः॥४॥ भावार्थ:-वीर्य-रुधिरथकी उत्पन्न थयेल मांसने जे माणसो भक्षण करे छे, तथा जे लोको तेनाथी पवित्रपणुं माने छ, तेवा जीवोनी देवताओ हांसी करे छे.. कमांसं क शिव भक्तिः, क मद्यं क शिवार्चनं / मद्य-मांसानुरक्तानां दूरे तिष्टति शंकरः॥५॥ भावार्थ:-वळी केटलाक मूढ माणसो मांसद् भक्षण करी महादेवनी भक्ति करे छे, तथा मद्य-दारुचें पान करी शिवर्नु पूजन करे छे, केटलाक अज्ञानियो तो मद्य-मांसथी शिवर्नु अर्चन करे छे. तो आवी रीते मद्य-मांसमां गाढ गृद्धि आसक्त रहेला जीवोथी शंकर सदाये दूर रहे छे. किं जापहोमनियमैस्तीर्थस्नानशुभाशुभैः। यदि स्वादंति मांसानि, सर्वमेतन्निरर्थकम् // 6 // भावार्थ:-जो कोइ माणस मांसनुं भक्षण करी जाप, होम, तप, नियम, तीर्थस्नान अने शुभाशुभ कार्योंने करे, तो तेम करवाथी पण शुं! अर्थात् कांइ ज नहि. तेनुं करेलु ते सर्व, मांस भक्षणथी निरर्थक थाय छे. प्रभासं पुष्करं गंगा, कुरूक्षेत्रं सरस्वती। वेदिका-चंद्रभागा च, सिंधुश्चैव महानदी // 7 // 155557卐卐卐. // 21 //
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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