________________ FF5卐ES5E. | कने विषे जइश. कहुं छे के यतः-पुराणादौ,उक्तम् अस्थिन वसति रुद्रश्च, मांसे चास्ति जनार्दनः। शुक्रे वसति ब्रह्मा च, तस्मान्मांसं न भक्षयेत् // 1 // भावार्थ:-हाडकाने विष महादेव वसे छे, मांसने विषे कृष्ण वसे छे, तेम जं वीर्यने विषे ब्रह्मा वसे छे, ते कारण माटे मांसनुं भक्षण करवु नहि. वळी पण कयुं छे के उक्तं च महाभारते मांसाधिकारेयावज्जीवं च यो मांसं, विषवत्परिवर्जयेत् / वशिष्टो भगवानाह, स्वर्गलोकेऽस्य संस्थितिः॥१॥ भावार्थ:-वसिष्ट ऋषि कहे छे के, जे माणस जीवत् जागत सुधी विषना पेठे मांसने त्याग करे छे, तेनी स्थिति स्वर्गलोकमां थाय छे, ते मरीने देवलोकमां जाय छे..." यो भक्षयित्वा मांसानि, पश्चादभिनिवर्तते / यमस्वामिरुवाचेदं, सोऽपि सद्गतिमाप्नुयात् // 2 // भावार्थ:-यमस्वामी कहे छे के, कदाच माणसे भूलने पात्र थइ प्रथम मांस भक्षण अज्ञानवृत्तिथी करेलु होय, पण ज्यारे तेने मांस भक्षणथी थता गेरफायदा अने प्रचंड पापर्नु उपार्जन करवापणुं विगेरेनी माहिती थाय छे, त्यारे ते मांसने पाछळथी पण त्याग करे छे, तो पण ते जीवनी सद्गति थाय छे. कृष्ण महाराजा युधिष्ठिरने कहे छे के