________________ चौमासी व्याख्यान // काठीयार्नु स्वरूप // // 20 // 卐卐卐卐卐: त्यां भटकवा लाग्यो अने अनुक्रमे सात व्यसनोनो सेवनार थयो. कोइ सद्भाग्यथी जितशत्रु राजानो सेवक थयो अने एवा प्रकारे राजानी भक्ति करी के राजाये प्रसन्न थइ तेने प्रधानपद आप्यु. तेथी ते बलीष्ठ थयो, अनुक्रमे सर्व राजमंडलने वश करी राज्यनो स्वामी जे जितशत्रु राजा हतो तेने गादी उपरथी उतारी पांजराना अंदर पूरी ते पोते राजा थइ बेठो अने निःशंकपणे परलोकपरमात्मा पापकर्मना भय रहित थइ मन माने तेम कही मन प्रमाणे पापकर्म युक्त कार्योना अंदर द्रव्य व्यय बहु ज करवा मंडयो. हवे कालिके दिक्षा लीधा पछी गुर्वादिकना विनय पूर्वक सारी रीते ज्ञान मेळवी बहु श्रुत थवाथी गुरु महाराजे तेने मूरिपद आप्यु. एटले सूरीश्वर महाराजा पृथ्वी उपर वीचरी अनेक भव्य जीवोने धर्मोपदेश आपी उपकार करता करता, ने ग्रामानुग्राम विहार करता, दत्तनी राज्यधानीमां गया. हवे मिथ्यात्वी हिंसक लोकोना स्वार्थमय बोधथी दत्त अनेक जीवोना वध रूप यज्ञो कराववा मंडयो अने यज्ञोमा होमेला अनेक जीवोने देखी आनंद मानवा लाग्यो, तेने सत्य देव, गुरु, धर्मना उपर बीलकुल स्वप्नने विषे पण प्रेम न रह्यो, कालिकाचार्य पोताना मामा मुनि आव्या छे तेनुं मुख जोवानी पण इच्छा न थइ. पण तेनी माता भद्राये तेने वारंवार टोकवाथी दुष्ट बुद्धिवालो दत्त वंदन करवा चाल्यो, त्यां जइ मन विना नमस्कार करी गुरुना पासे बेठो ने बोल्यो के हे मातुल ! एटले हे मामा ! तुं बोल मने कहे के, यज्ञ करवानुं फल शुं ? आवी रीते पुछवाथी गुरुये जीवोना रक्षणभृत धर्म कह्यो, त्यारे दत्त बोल्यो हे प्रभो! हुं तने धर्मर्नु फल पुछतो नथी, हुं तो पुछ छु के यज्ञ करवानुं शुं फल ? आवी रीते वारंवार पुछवाथी गुरुये कह्यु के हे दत्त ! शुं तुं नथी जाणतो के, यज्ञ करवानु फल महा नरकनी प्राप्ति थाय छे, माटे त्हारी नरकगति थशे. तुं मरीने नर-! 4卐ay / // 20 //