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________________ "598卐卐卐卐! नेत्रो भूमिपर पडी गया, तो पण जेओ मेरु पर्वतना समान धैर्य धारण करी रहेला अने संयमथी नहि चलायमान थयेला महात्मा मेतार्य मुनिमहाराजने हुं नमस्कार करुं छु. आवी रीते मेतार्य मुनि महाराजनुं दृष्टांत सर्वथा प्रकारे जीवदया पालवा संबंधि पूर्ण थयु. 2 सुज्ञ जीवोये पण ते ज प्रकारे जीवदयार्नु प्रतिपालन करवाथी आ चोमासाना चार मास तेमना कृतकृत्य थयेला | गणाय छ, मतलब के बीन श्रद्धाथी संसारनी उपाधिथी अगर गमे ते कारणथी बार मासमां निरंतर आठ मास जीवदया न पालि शकाय, तो पण चोमासाना चार मासमां जरूर यतना पूर्वक जीवोनो बचाव करवो. जींदगी सुधीना जीवोना वध करवाना पच्चक्खाण करवाने सूक्ष्म जीवोनो बचाव चोमासामां बहु ज सावचेतीथी करवो, कारण के ते ऋतुमां जीवोनी उत्पत्ति घणी ज होय छे. सुज्ञेषु किंबहुना. हवे सत्यवादना उपर त्रीजुं महात्मा श्री कालिकाचार्यनुं दृष्टांत कहे छे. कालिकाचार्य दृष्टान्तो यथा. तुरमिणि नगरीने विषे कालिक नामनो ब्राह्मण रहेतो हतो, अने तेने भद्रा नामनी व्हेन हती. तेम ज दत्त नामनो भाणेज हतो. एक दिवस गुरु महाराजनो समागम थवाथी अने तेनो धर्मोपदेश श्रवण करवाथी कालिकने वैराग्य उत्पन्न थयो, तेथी संसारनी असारताने चिंतवता कालिके गुरु महाराज पासे दिक्षा अंगीकार करी, हवे तेमणे दिक्षा अंगीकार करवाथी दत्तने कोइ शिक्षा करवावालं रघु नहिं, तेथी दत्त अत्यंत बगडी गयो, मातेला सांढ माफक निरर्गल थइ ज्यां
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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