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________________ चौमासी ध्या 卐 | तेर काठीयार्नु स्वरूप॥ // 19 // 卐E卐卐卐卐卐! हा हा ! हुं हणाइ गयो-में मृढपणाथी महा अकार्य कयु. लोको एकत्र थइ गया. मेतार्य मुनिने मरण पामेला देखी तिरस्कार धिक्कार करी लोको तेने मारवा मंड्या, श्रेणिक राजाने खबर पडवाथी सेवकोने आदेश कर्यो के मुनिनी हत्या करनार ते पापी सोनीनो कुटुंब सह वध करो. आवा समये जीवितव्यनी इच्छा करनार सोनीये पोताना कुटुंब सहित दिक्षा अंगीकार करी, ते देखी राजाए कयुं के हे अधम ! दिक्षा लेवाथी तने ने हारा कुटुंबने जीवता मुकुं छु, पण जो व्रतने छोडी दइश तो लोखंडना कडायाना अंदर तने पकावीश, एवी रीते राजाये कहेवाथी सोनी पण मुनि वेषमा स्थिर थइ मुनि हत्यानु पाप आलोची-निंदी-गहीं तपस्या करी आत्माने शुद्ध कयों ने सद्गतिमां सोनी गयो. जेवी रीते महात्मा मेतारज मुनिये एक जीवने बचाववा खातर पोताना प्राणने पण अर्पण कर्या, तेवी रीते तमाम जीवोये जीव दयानुं प्रतिपालन करवू जोइये. शास्त्रकार महाराजा एवा कृपालु मेतार्य मुनि महाराजने नमस्कार करे छे. कयु छ के जो कुंचकावराहे, पाणि दया कुंचगं तु नाइक्खे, जीवियमणुपेहं तं, मेअजं रिसिं नमसामि॥१॥ भावार्थ:-क्रोंच पक्षीनो अपराध छतां पण प्राणियोने विषे दया करनारा मेतार्य मुनिने जवना भक्षण करनार क्रोंच पक्षीनुं नाम सोनी पासे दीधुं नहि, तेवा महान् दयालु अने जीवितव्यनी पण उपेक्षा करनार परम कृपालु महात्मा | श्री मेतार्य मुनिने हुं नमस्कार करुं छु वळी पण. कडुं छे केनिप्फेडिआणि दुन्निवि/सीसावेढेण जस्स अच्छीणि, नय संजमाओ चलिओ, मेअन्ज मंदरगिरिव्व // 2 // भावार्थ:-जे महा पापिष्ट सोनीये चामडाने पाणिना अंदर भींजावीने जेना मस्तकना उपर वींटवाथी जेमना बन्ने 卐795).
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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