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________________ 卐Ay 卐卐4. 35卐卐卐! पाम्याथी स्वतंत्रता पण लगार मात्र पण खेद कर्या शिवाय धैर्य-दृढता धारण करी शांत मने सहन करवू ते ज आत्मानो उत्तमोत्तम धर्म छे अने आवी रीते ज उदय आवेल कर्मने वेदवाथी घणा कर्मनी निर्जरा थाय छे. माटे रे जीव ! शांत था, शान्ति कर. सोनीनो दोष नथी, तारा कर्मनो ज दोष छे. आवी भावना भावता मेतारज मुनिमहाराजा विशेष भावनाये चडया. हे जीव ! ध्यानारूढ महात्मा श्रीगजसुकुमाल मुनिमहाराजाना मस्तके चोतरफ माटीनी पाल बांधी अंदर खेरना अंगारा भरी तेमने तेमना सासराये संताप्या. तोपण ध्यानथी नहि चलायमान थता केवलज्ञान पामी मोक्षे गया. सुकोसल मुनिने मस्तकथी पग पर्यंत वाघणे वलूरी नाखी भक्षण करवाथी सद्गति पाम्या. अरणिक मुनिमहाराजाये अणसण करी, ज्वाज्वल्यमान अग्निना जेवी ग्रीष्मऋतुने विषे तपी गयेल शिला उपर संथारो करी माखणना समान महा कोमल एवा पोताना देहने बाली भस्मीभूत करी इच्छित सुख मेलव्यु. पापिष्ट एवा पालके स्कंधक मुनिमहाराजना पांचसो महानुभावो मुनियोने घाणीमां घाली पीलवाथी समग्र मुनियो केवल पामी मोक्षे गया, तेम ज अंबडतापसना सातसो शिष्यो तृषाने सहन करी सद्गतिगामी थया. माटे हे जीव ! सर्व जीवोने पोताना कर्या कर्मों ज भोगववाना छे, तेना अंदर बीजा कोइनो दोष नथी, आवी रीते भावना भावता क्षपक श्रेणिपर आरोहण थइ अंतगड केवली थइ मोक्षने विषे गया अने जन्म जरा मरणना महान् दुःखोथी मुक्त थया. हवे कोइ माणस लाकडा कापतो हतो तेमाथी लाकडानो टुकडो उछली जवला चरीने बेठेल क्रौंच पक्षीना गलामां लागवाथी तेने भय थयो अने ते भयभीतपणामां तेणे जवला वमी काढ्या. ते जवलाने देखी सोनी खेद करवा मांड्यो के, 41954
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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