________________ +9卐卐 विषे गोचरी फरता मेतारज मुनि सोनीने घेर गया, ते सोनी निरंतर श्रेणिक महाराजने जिनेश्वर महाराजना पूजन करवा निमित्ते एक सो ने आठ सुवर्णना जव करतो हतो, तेवामां मुनिने अकस्मात् घरना आंगणाने विषे गोचरी आवता देखी सोनी उठी उभो थयो ने मुनिने कहेवा लाग्यो, पधारो महाराज! आजे म्हारा घरचें आंगणुं पवित्र थयु. आजे वादल विनानो वरसाद थयो. सोनानो सूर्य उग्यो ने मोतीना मेहुला वरस्या, पधारो ! महाराज !! पधारो एम कही घरमा जइ मोदकनो थाळ भरी लावी कहेवा मंडयो, के ल्यो आ आहार आपने सुझतो-कल्पनीय छ माटे ग्रहण करो, मने भवसमुद्रथी तारी म्हारो उद्धार करो, आम कही जेवो दृष्टिपात सोनी आगल पाछल करे छे, तेवा समयमां ते घरने विषे गयो | त्यारे क्रौंचपक्षी आवीने सुवर्णना जवो गली गयो. तेने सोनीये घर बहार आवी नहि देखवाथी सोनी विचारमा पडयो, के जवला क्यां गया. शंकाशील थइ तेणे मेतार्य मुनिने पूछ्युं के हे महाराज! इंहाथी जवला क्यां गया. हवे मुनिये विचार कयों के जो हुँ कहीश के क्रौंचपक्षी चरी गयो छे तो सोनी तेनो घात करशे, माटे म्हारे मौन धारण कर ते योग्य छ, एम विचारी कांइ पण नहि बोलतां मौन धारण कर्यु, तेथी सोनीने वधारे शंका थइ तेथी चामडाने पाणिमां | भींजाबी मुनिना मस्तकपर चो तरफ वींटी मुनिने तापमां उभा राख्या. हवे जेम जेम तापथी चामडुं सुकावा मांडयुं तेम | तेम मुनिनु मस्तक पण संकोचावा मांडथु, शरीरमा वेदना असह्य थवा मांडी, बन्ने नेत्रो हता ते नीकली पडया अने आवा असह्य दुःखमां पण दुःख नहि गणता कृपाना समुद्र नीचे मुजब भावना भाववा लाग्या कडुं छे के: सह कलेवरखेदमचिंतयन् , स्ववशता हि पुनस्तव दुर्लभा।