________________ y चौमासी व्या ख्यान / 355E卐卐卐s हित करवा वाली छे, माटे म्हारे बराबर तेनुं प्रतिपालन पूर्णभावथी करवू एम विचारी संयमर्नु आराधन करवा लाग्यो, पण पुरोहितनो पुत्र विचार करे छे के अहो ! आ साधुओ अपरजाति छे, क्यां तो हुँ उत्तम जाति शौचादि कियावान् पवित्र काठीयार्नु ब्राह्मण अने क्यां तो आ मलीन वेषवाळू साधुपणुं ? आवी रीते जुगुप्सा करी साधु धर्मनी निंदा करवा लाग्यो अने | र स्वरूप // तेवीज स्थितिमा साधुपणुं अणमने पाळवा लाग्यो. अनुक्रमे बन्ने जणा मरीने स्वर्गे गया, त्यां बन्ने जणाये अरसपरस एवी रीते संकेत कयों के, आपणा बन्नेमाथी प्रथम चवे तेने पाछल देवलोकने विषे रहेलाये आवी पहेलाने बोध करवो. हवे कर्मना योगे प्रथम ब्राह्मणनो जीव चव्यो अने संजमनी पूर्व भवने विषे निंदा करवाथी राजगृह नगरने विषे मेती वेढडीनी कुक्षिने विषे उप्तन्न थयो. कयुं छे के, जाति आदिनो मद करनार प्राणी नीचकुलने विषे उत्पन्न थाय छे. श्रीमान् हेमचंद्रसूरीश्वर महाराजाए योगशास्त्रमा कयुं छे केजाति-लाभ-कुलैश्वर्य-बल-रूप-तप-श्रुतैः / कुर्वन्मदं पुनस्तानि, हीनानि लभते जनः॥१॥ भावार्थः-कोइ पण माणस जातिमद 1, लाभमद 2, कुलमद 3, जैश्वर्यमद 4, बलमद 5, रूपमद 6, तपमद 7, न अने ज्ञानमद 8, ए आठ मदमांथी हरकोइ मदने करे छे, तो ते भवांतरने विषे तेथी उलटां उंचकुल विगेरे सारापणानो त्याग करी नीचापणाने पामे छे. तेवी ज रीते आ ब्राह्मणनो जीव जे जातिमद करनारो हतो ते मेतीनी कुक्षिने विषे उत्पन्न थयो, त्यां धन नामनो श्रेष्टि वसतो हतो, तेनी स्त्री निंदु हती (एटले जेटला संतान थाय तेटला मरी गयेला उत्पन्न थाय तेने निंदु कहे छे.) ते निंदुर्नु // 15 //