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________________ ! 卐 3 * FEEEEEEEEE.! थको देवलोकने विषे गयो. ते समये मंत्री आदि राज्यना सामंतवर्गे राज्य गादी उपर सागरचंद्रने स्थापन करवा मांड्यो पण दिक्षा अंगीकार करवानी वृत्तिवालो ते राज्यने विष हर्ष पाम्यो नहि. आ अवसरे तेनी ओरमान माताने सागरचंद्रे कयु के, हे माताजी! र तमारा पुत्रने हुँ राज्य आपुं छु ते तमो ग्रहण करो, म्हारे तो दिक्षा लेवी छे, आवी रीते कह्या छतां पण आ छोकरा हजी बालक छे राज्य केवी रीते करशे एम धारी अपरमाताये राज्य आपता छतां पण लीधुं नहि, अन्यदा निरंतर सागरचन्द्रना राज्यनी वृद्धि थती जोइ सागरचन्द्रनी अपरमाता दुष्ट बुद्धिवाळी थइ दुष्ट विचारो करवा लागी के, राज्यने आपता छतां पण में ली, नहि, ते बहु ज खोटुं कयु छे. हवे म्हाराथी राज्य म्हारा पुत्र माटे मागी शकाय नहि, माटे सागरचंद्रने मारी नाखू तो म्हारो पुत्र राज्यनो मालीक थाय, आवी दुष्टभावना धारण करी सागरचंद्रने मारवाना उपायो शोधवा लागी. एक दिवस सागरचंद्र राजा उद्यानने विषे गयो त्यारे रसोइयाने कहेतो गयो के सिंह केसरीया लाडु उद्यानमा दासीना साथे मोकलावजे, तेम कहीने उद्यानमा जवाथी रसोयाये दासीने सिंह केसरीया मोदक आपी विदाय करी, एवामां दासीना हाथमां मोदक देखी अपरमाताये कयुं के त्हारा हाथमां शुं छे ? लाव जोउं एम कही दासीना हाथमाथी मोदक लीधो अने हाथमां झेर राखेखें हतुं ते वडे करी लाडुने विषमिश्रित कों ने दासीने पाछो आप्यो. दासीये ते लाडु सागरचंद्र राजाने आप्यो. राजाये ते लाडु पोताना पासे क्रीडा करनार अपरमाताना क्षुधातुर बने पुत्रोने अर्ध अर्ध व्हेंची आप्यो. ते मोदकना भक्षण करतानी साथे ज विषना वेगथी बन्ने बाळको मूर्छा खाइ जमीन उपर पडया. राजाये महावैद्योने बोलाव्याथी तुरत तेओ -17SE卐卐.
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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