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________________ चौमासी व्या काठीयार्नु स्वरूप॥ ख्यान // // 13 // 卐卐yyyy हवे बीजं दृष्टान्त सम्यक् प्रकारे जीवोना पर दया करनारानुं कहेवामां आवे छे, एटले के सुज्ञ अने भवभीरु जीवोये | एवा प्रकारे दया पालवी के आत्मानुं कल्याण शीघ्रताथी थइ जाय, जेमके महात्मा मेतारज मुनिये पोताना प्राण अर्पण करीने पण क्रौंच पक्षीना प्राण बचाव्या आनुं नाम साची दया कहेवाय छे. मेतार्यमुनि दृष्टान्तो यथा / आ भारत भूमिने विषे सांकेत नामर्नु एक मनोहर नगर हतुं अने ते नगरमां चंद्रावतंसक नामनो राजा राज्य करतो हतो, तेने पहेली सुदर्शना अने बीजी प्रियदर्शना नामे बे राणीयो हती. पहेली राणी सुदर्शनाने सागरचंद्र तथा मुनिचंद्र नामना वे पुत्रो हता. बीजी राणी प्रियदर्शनाने गुणचन्द्र तथा बालचन्द्र नामे बे पुत्रो हता, चन्द्रावतंसक राजाये मोटा पुत्र सागरचन्द्रने युवराज पदवी आपीने युवराजपदे स्थाप्यो अने अवंतीनुं राज्य बीजा मुनिचंद्र कुमारने आप्यु. अन्यदा प्रस्तावे चंद्रावतंसक राजा पोताना घरने विषे काउस्सग्ग ध्याने रह्यो ने एवी रीते नियम कों के घरने विषे आ दीपक-दीवो ज्यां सुधी बुझाइ न जाय त्यांसुधी म्हारे काउस्सग्ग ध्यान करवू, आवो अभिग्रह धारी पोते ध्यानमा रह्यो. हवे अंधकार थशे तो म्हारा स्वामीने कष्ट थशे, आq समजी पहेरो भरनार माणस-पहोरे पहोरे दीवामां तेल नाखतो गयो, तेथी दीपक प्रकाश करवा लाग्यो. आवी रीते रात्रिना चारे पहोर तेल नाखवाथी दीपक प्रातःकाल सुधी रह्यो. ते टाइममां राजाये श्रेष्ट ध्यानरूपी दीपिकाने आगल धरी भाव व्रतने विषे आरोहण थइ रात्रिमा परिसह सहन करवाथी वृक्षनी शाखा जेम तुटी पडे तेवी रीते पोताना बन्ने पगो आखी रात्रि उभा रहेवाथी जकडाइ गया ने भृमि उपर पड्यो अने उत्तम भावना भावतो
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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