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________________ 1955E5' ज्ञानि महाराजाओनो महोत्सव करवा देव देवांगनाओ आव्या, ने सुवर्ण कमलनी रचना करी. आवो बनाव जोइ वाणियो ठरी | गयो, ने विचार करवा लाग्यो के हा हा खेदनी वात छे के, चोरी करनारा जीवोने पण केवलज्ञान प्राप्त थयुं हुं निर्भागी मंदभागी हीनभागी भारेकर्मी बहुल संसारी के जे नगरमां देवगुरु धर्मनु सेवन हतुं तेने छोडी दइ केवल आ चोरोनो पैसो धूती पैसादार थवा अहीं आवी चोरो करतां पण मँडो बन्यो ! धिक्कार छ म्हारा अवतारने धिक्कार छ म्हारा दुष्ट लोभने ! आवी रीते आत्मनिंदा करता शुभ भावनाथी तेने पण केवलज्ञान तुरत उत्पन्न थयु. पांचे केवल ज्ञानि महाराजाओनो महोत्सव कों. पल्लीना चोरो देखी रह्या छे के आ शुं थइ गयुं विगेरे विचारणा करनारा समग्र चोरोने धर्मोपदेश आपी केवलीये बोध करवाथी तमामे दिक्षा लीधी. देवताये समग्रने साधुवेष अर्पण कर्यो, ने मुनिमहाराजने वंदना करी स्वस्थाने गया. केवली महाराजाओ भूमिमंडल उपर विचरी घणा भव्य जीवोने बोध करी मोक्षमां गया ने शाश्वत सुखना भोक्ता थया. ___ सुज्ञ वाचकवृंद ! केम देख्यु के आनुं नाम सामायिक कहेवाय. गमे तेवा कटोकटीना समयमां पण जे जीव आर्तध्यान | नहि करता स्थिर चित्तथी सामायिकनुं प्रतिपालन करे छे, तेज जीव महान् लाभने मेलबी शके छे, माटे दरेके सामायिक लइ विनय विवेक विचारपूर्वक वर्तन करी ज्ञान ध्यानमां ज काळ काढवो जोइये, पण सामायिक लइराग-द्वेष, क्रोध, मान, | माया, लोभ, निंदा विकथा, हांसी, ठहामश्करी, विषय कषायनी वातो, मद, मोह, मान, मत्सर विगेरे करवा जोइये नहि. माटे हे उत्तम जीव ! त्हारे जो सद्गतिमा जइ शीघ्रताथी मोक्षमा जq होय तो व्हार भटकता मनने रोकी, राग-द्वेष त्याग करी, समताथी सामायिक करवा उजमाल था. 495443
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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