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________________ F चौमासी * FE व्या तेर काठीयार्नु स्वरूप ॥ ख्यान ॥ ॥११॥ SE卐卐卐 लाग्यो अने थोडा वखतमा पैसापात्र थयो. आ वाणियाए विचार कर्यों के 'जेवो आहार तेवो ओडकार' एक तो चोरपल्लीमां बे | माथानो थइने रहुं छु, चोरीनो माल वेचाती लङ छ, चोगणा पैसा खाउं छं, धर्म ध्यान काइ करतो नथी, केवल पापर्नु ज पोषण करुं छु ते ठीक नथी. विपत्ति आवीने ज्यारे उभी रहेशे, त्यारे धर्म विना कोइ सहाय करनार नथी. हवे बीजी धर्म क्रिया तो आ अटवीमा म्हाराथी काइ बनी शके तेम नथी, कारण के तेवा देव गुरु धर्मना अहीं साधनो नथी, परंतु ज्यारे ज्यारे अवकाश मलशे, त्यारे जेवी फुरसद हशे ते प्रमाणे एकाद वे सामायिक निरंतर करतो रहीश. आवी धारणा करी पोतानो विचार अमलमां मूकी अवकाशना समये रात्रि दिवस सामायिक करवा लाग्यो. अनुक्रमे घणां पैसा भेगा कर्या, पण घर प्रत्ये जवानी इच्छा थइ नहि, कारण के नीच लोकोनुं अन्न, पैसो खावाथी तेनी बुद्धि नीच जेवी थइ गइ. हवे एक दिवस ते पांचसे चोरोना नायको मोटा चार जणा हता तेओए बधा चोरोने भेगा करी खानगी मसलत चलावी के भाइयो आपणे चोरो छीये, आपणे बीजानी चोरी करीने लावीये छीये. अंधारामां आपणे कुटाइये छीये. भुख तरश ने दुःख आपणे वेठीये छीये, वली उंघ वेची उजागरो आपणे करीये छीये. कदाच पकडाइ जइये तो दंडाइये कुटाइये मराइये ने फांसीये पण आपणे ज चडवा वखत आवे, मतलब के पैसाने ज माटे आपणे आटला बधा कष्ट सहन करी भयंकर जोखममां उतरीये छीये. त्यारे जेना माटे काइपण जोखम नथी तेवा आ वाणियाने आपणे केम लुटता नथी? कारण के आ वाणियो नागोपुगो अहीं आव्यो हतो, ने बे माथानो थइ आपणी ज पल्लीमां मुछो उपर ताल दइ रह्यो छे, ने आपणाज पैसा लइ खाइ पीने ताना करे छे, तो हाथमा निधाननी प्राप्ति थइ तो ते हवे न लइये तो आपणा जेवो बीजो 卐卐卐 12卐E卐 ११॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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