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________________ F卐 ) चौमासी व्याख्यान ॥ ते र. ) काठीयार्नु स्वरूप॥ ॥९ ॥ कहेनारो होय, तथा चाडी खानारो होय, तथा पारकाना दूषणो सांभळवामां, तेम ज पराइ वात करवामां तत्पर होय, ते माणस मरीने बहेरो, तथा मुंगो, थाय छे. दहन, अंकन, घातन, छेदन, विगेरे प्रकारना दुःखो जीवोने करनार माणस, बहुज रोगी थाय छे, तथा तेनाथी विपरीत होय ते निरोगी थाय छे. जे माणस पैसा उपार्जन करनार माणसने अंतराय करनारोहोय, तथा परनी थापणोने ओळवनारो होय, तेम ज हरण करनार होय, तेम ज पर धनने हरण करवामां एकांत रीते आसक्त होय, ते माणस दुर्गति पामे छे, तथा जे माणस मधनो घात करनारो होय, तथा अग्निदाह दावानल लगाडनारो होय, तथा स्त्रियादिकनो वध करनारो होय, तथा बाल वनस्पतिनो घात करनारो होय, ते माणस मरीने कुष्टी थाय छे. जे माणस पाडा उपर, ऊंट उपर, गधेडा उपर घणां भारने चडावनारो होय, तथा तेमने पीडा करनारो होय, तेम ज मनुष्य जातिने पीडा करनारो होय, ते माणस मरीने वामन थाय छे. जे माणस साधुओनी आज्ञाने नहि माननारो होय, तथा विक्षोभ उभो करनारो होय, ते माणस आंगलीयो विनानो वामन, कुब्ज, थाय छे, तेम ज कोइपण प्रकारे स्थिरता अने शांति विनानो थाय छे. तप अने शीयल गुणने धारण करनाराओनु, जे माणस विपरीत वांकु अने असत्य बोले छे, ते दुर्गध मुखवालो, टुंकी जीभवालो तणा बुंठो अने शरीरमां घातादिकवालो थाय छे. ए रीते वीतराग महावीर महाराजा देशना आपता कहे छे के, जे जीवो ए प्रकारे समजी राग-द्वेषादिक, काम क्रोधादिक मान मदमोहादिक, वैर विरोधादिकने, त्याग करी, महात्मा श्री जिनेश्वर महाराजना कथन करेल धर्म मार्गर्नु आलंबन करी, मन, वचन, कायानी शुद्धिथी, जो धर्मर्नु आराधन जे भव्य प्राणि करे छे, ते कल्याण मंगलिकनी मालाने प्राप्त करे छे. भगवान महावीर महाराजानी अमृतमय वाणीथी पर्षदा सींचाइ गइ. घेडा उपर घणा बाल वनस्पतिमा घात करनारो होय, मज पर धनने हरणारनार माणसने अंतराय माणस, बहुज घेडा उपर घणां भारने चडायमानो घात करनारो होय, ते माणस मवानल लगाडनारो होय, तथा स्त्रियाद 4卐卐Ayy43 14134 गह. | ॥९॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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