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संवेग रंगमा रंगाइ गइ. वैराग्यभावथी वींटाइ गइ. रोमेरोमे अद्वितीय आनंदमय थइ गइ. धीरवीर पुरुषो सिंहसमान पराक्रमी थया, तेओये संसारना बंधनो तोडी नाख्या, ते ज समये पंचमुष्टि लोच करवा भाग्यशाली थया, दिक्षा भगवानने हस्ते लीधी, कोइक सम्यक्त्व पाम्या, कोइके यथाशक्ति नियमो लीधा. श्रेणिकादिक भद्रिक भावी जीवो, भगवान महावीर महाराजाना गुण गणगान करता स्वस्थाने गया. करुणानिधि, दयासागर, वर्धमान स्वामी, पण भव्यभावीक भक्तजनोने बोध करवा अने जगतना दुःखी जीवोने बोध करी तारवा, संसारनो पार पमाडवा, पोताना परिवार सहित अन्यत्र विहार करी गया, अने स्थले स्थले विचरी, घणां भव्य जीवोने सद्गतिगामी कर्या. उत्तम जीवोने प्रमाद त्याग करी, तेरकाठीया त्याग करी, एवी रीते धर्मनुं प्रतिपालन करवू के, शीघ्रताथी मोक्षनी प्राप्ति थाय. इतिश्री तपागच्छगगननभोमणिः, श्रीजैनशासन श्रृंगारभूत, निरंतर शुद्ध ध्यानारूढ, श्रीमान् १००८ बुद्धिविजयजी (बूटेरायजी) महाराजना मुनिमंडल मुकुटमणिः, गणिवर्य श्रीमान् १००८ मुक्तिविजयजी (मूलचंदजी ) महाराजना शिष्यवऱ्या, क्षमानासागर श्रीमान् १००८ गुलाबविजयजी महाराजना शिष्य, मुनिराज श्रीमणिविजयजीये, प्रथमना काठीयाना स्वरूपने देखी विस्तार युक्त कांइक बनावेल तेरकाठीयानुं स्वरूप, बोरुगामने विषे, श्रीपद्मप्रभु महाराजनी पूर्ण कृपाथी संवत् १९८१ ना आसो मासनी शुक्ल पूर्णिमा, अने शुक्रवारे लखेल छे, अने तेनी बीजी आवृत्ति १९९२ ना आसो शुद १० विजयादशमीए
फरी छपावी छे. ते वक्ता, श्रोता, महानुभावोने कल्याण मंगलिकनी मालाने अर्पण करनार थाओ.
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