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品
मा
चौमासी
व्या
काठीयानुं
॥ ८० ॥
आवती होय, तोये धूल नाखी, तेना रूप रंग अने ढंग तो जोवामां आवे ! अने वे घडी जीवडो तो खुशी थाय. ते पण नथी, आ तो बन्ने बाजुनुं चूकवानुं छे, माटे इंहां बेसवुं नथी अने फरीथी आवकुं नथी. चाल उठ भाइ घर भेगो था, अगर ख्यान ॥ सी घरे जावुं छे, शाक लाववुं छे, उघराणी करवी छे, छोकराओ रोता हशे, बाइडी बोलावती हशे, छोकरी मोटी थइ छे र स्वरूप परणाववी छे. नाना छोकराने नीशाले मोकलवो छे, मोटा छोकरानी वहूनुं श्रीमंत आन्युं छे, खर्च क्यांथी काढवो, कावादावा करवा छे, जप्तीयो लह जवी छे, वारंटो कढाववा छे, विगेरेमां एवो व्याक्षिप्त चित्तवालो बनी गयो के, हुं क्यां कुंतेनुं पण तेने भान रह्युं नहि, व्याक्षेप काठीयाये तेने जीती मोहराजा पासे जह जय जय शब्दथी तेने वधावी ने दुश्मनने दुर करवानी वार्ता कही, मोहने बहु ज रंजन कर्यो एवामां वली चेतना आवी के, में दुर्ध्यान कर्यु. प्रथम तो गुरु महाराज उपदेश आपे छे, ते तेना घरनो आपता नथी, पण वीतरागनी वाणिनो ज आपे छे, ते वीतरागनी वाणी, मोहवल्ली कृपाणी समान छे, अमृतनी खाणी छे, वली सूत्रने विषे गुंथाणी छे, भाव भक्तिथी सांभलनारा भव्य प्राणी छे, कर्म कंदने भा हणनारी छे. मोहने धूळधाणी करनारी छे, संसार समुद्रने तारनारी, भव भ्रमण वारनारी, अनंतज्ञान दर्शन आपनारी अने नं मोक्षनगरमां उजाणी करावनारी छे, ते ज वाणीने गुरु महाराज वांचे छे, वली तेना कंठनुं म्हारे शुं काम छे, म्हारे तो धर्मोपदेश ते आपे छे तेनुं ज काम छे, वली समजण पण खासी पडे छे. जुवोने वचने वचने केम समज्याने ! खबर पडीने ! जाण्युंने, जाणवामां आव्युं ने ? आम वारंवार बबे त्रण त्रण वार तो एकनी एक बात समजावे छे. तो आथी वधारे ते वली केटलुं समजावकुं हतुं, बिचारा जीमना तो कूचेकूचा करी नाखे छे. वली चंद्रवा, पूठीया, तोरण, पाठा,
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॥ ८० ॥