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________________ | चौ मा पाटली, बाजोठ अने ठवणीनुं पण म्हारे शुं प्रयोजन हर्तुं ? होय तो जैनशासननी शोभा छे ! अने ते विचार संघना अग्रेसरोने करवानो छे, कांह म्हारे करवानो नथी ! वली श्रीमंतो आवो के निर्धन आवो तेमां आपणे शुं ? पैसादारोना सी बापनो कांइ धर्म नथी, धर्म तो सांभले तेनो छे. वली रूपाली स्त्रियो नथी आवती ते बहु ज सारुं छे. कारण के अपलखणी आ म्हारी आंख सखणी रहेती नथी अने मारुं साळु मनडुं चंचल रहे छे, माटे स्त्रियो नथी आवती ते पण ठीक छे, मने क सुखे करी धर्म संभलाशे ! वली कथावार्ता सांभलवानी इच्छा धरावुं छु, तेमां म्हारुं कल्याण शुं थवानुं हतुं ! एनाथी खडखडाट हसवाथी, हास्य मोहनी कर्म बंधाय छे माटे म्हारे तेनुं पण कांइ काम नथी, म्हारे तो संसार थकी विरक्त करनारी अनित्यादिक भावनानी ज जरुर छे. म्हारे सर्व संसारने असार समजवानी जरुर छे, धर्मबोध पामवानी आवश्यकता छे सर्वे जीवोना पर मित्रता प्रेम धारण करी, रागद्वेषादिने मारी, चित्तने स्थिर करवानी खास जरुरीयात छे. माटे धर्मगुरु पासेथी बोध सांभली संसारथी मुक्त थवानो उद्यम करूं, एम चिंतवी स्थिर थर व्याख्यान सांभलवा बेठो, तेनी मोहने खबर पडी. प्रथम तो मोहराजा पोकेपोक मुकीने रोयो, तेनो पोकार सांभली कुतूहल बारमो काठीयो दोडतो आव्यो, नुं अने खमा ! अन्नदाता ! खुदाविंदने खमा ! आज्ञा करो. शो हुकम ! दिलगिर न थाओ ! मोहे भव्यजीवने भ्रष्ट करवानुं कवाथी महाराज ! बोलवु कहेतुं नहि, पण करी बतावकुं सारुं माटे हुं जाउं छं, एम कही दोड्यो, ने धर्म श्रवण करनाराना शरीरमां शीघ्रताथी पेठो, एटले भाइ साहेबनी डागली चस्की, कांइक कौतुक जोवामां आवे तो सारुं, एवो विचार करे छे, तेवामां बहारथी माणसोनुं टोळं आव्युं, तेमांथी एक जणे बीजाना कानमां कयुं के, बहार कौतुक जोवानुं छे. ते सांभली व्या ख्या न भ 5 25 25 5 5 5 5 5 - षां र का स्व प
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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