________________
चौमासी
व्या
ख्यान ॥
॥ ७९ ॥
फ्र
मा
螺
र
व्या
त्या
ठी
पडे त्यारे ज तेनी भूलो काहीये के नहि ! ते खरं वांचे छे के खोडं बांचे छे, अथवा तो जेवो जहलो जोगी तेवी मकवाणी मालण आ बन्ने सरखा मल्या छे, जेवा गुरु तेवा चेला, वाणिया, सरखे सरखा मल्या ने भवना दुःखडा ढल्या, एवो घाट सी थयो छे, एम कही उठवा मांड्यो, अज्ञाने जइने मोहने वधामणी आपी के, मोह महाराजानो विजय थाओ ! जे रहो ! तेथी मोहे बहु ज मान आप्युं अने निश्चिंत थयो, तेवामां भव्यजीवने शुद्ध चेतना आवी, अने विचारखा लाग्यो के अरेरे! आ में शुं चितव्यं, माणसोमां ज्यारे अज्ञान भराय छे, त्यारे भान भुली जाय छे अने बुद्धि बल उडी जाय छे, तेथी विचार 5 करवानी चेतना रहेती नथी, गुरु महाराज तो सारु वांचे छे, स्पष्ट बोले छे, अने ते सांभली श्रोताजनोना मस्तक डोले छे. शुद्ध प्ररूपणा करे छे. अज्ञानपणानो घोर अंधकार छे, तेमां घेरायेला जीवोने अत्यंत अज्ञानदशा रहेली छे, अने तेथी ज अव्यवहारराशीमां अनंतकाल जीवोने भटकं पडे छे. अज्ञानि माणसने ज सार असारनी खबर पडती नथी. अज्ञानि माणस ज हिताहितने नहि जाणतां भलाने झुंड कहे छे. आ गुरु महाराजनो उपदेश ! माणसने तो शुं पण जडने पण चैतन्य उत्पन्न करे एवो छे. छतां म्हारी अज्ञान दशानो ज दोष छे, एम जाणी आतुरताथी जिनेश्वरनी वाणी सांभलवा लाग्यो. तेथी तेने रोमेरोम हर्ष थवा लाग्यो, पोतानी भुल कबुल करी पश्चाताप करवा लाग्यो. अने गुरु महाराजना वचने वचने पोताना कानने पवित्र करी ते वचनो अंतःकरणमां स्थापन करी, तेने मनन करवा लाग्यो. जेनो अर्थ नहि समजायो ते पुछवा लाग्यो अने तेम करतां जोतजोतामां अज्ञान नट थयुं, ज्ञान वध्युं, अने क्षयोपशम जागृत थयो, अने सराण उपर चडावेल हीरो जैम चलकाट मारे तेम तेनो आत्मा तेजस्वी बन्यो अने वीतरागना वचनामृतरूपी समुद्रमां रुचिपूर्वक स्नान
445
P
编
भा
क
या
स्व
品
क
तेर
काठीयानुं
स्वरूप ॥
।। ७९ ।।