________________
पण मारी बाजु काई, यथा न होत
卐9/yyy
राजनो अधिकारी, इंद्रजालीयो आव्यो छे, ते वधाने बोध आपी आपी म्हारी आणा तोडावी, केइकने देशविरति, केइकने सर्वविरति, केइकने भद्रक परिणामी बनावी, केइकना पुन्य खजानाओ जोतजोतामां भरी दीधा अने केइकने तो मोक्षमां पण पहोंचाडी दीधा. म्हारा बहादुर लडवैयाओने पण मारी तोडी पाडया, म्हारा सैन्यमां भंगाण पडद्यु. म्हारुं मान पण लुंटाइ गयु, त्यारे म्हारे तो हवे माखीयो ज उडाडवानुं रह्यु के बीजुं कांइ, ते तमो कहो, आम करी उंडो नीसासो मुक्यो. कारण के नीसासो छे ते ज दुःखना निवारण- कारण कहेल छे. यथा निसासो भले सरजीयो, जे आधो दुःख सहंत'। निसासो न सरज्यो होत तो, हैडं फुटी मरंत ॥१॥
आवी रीते निसासो मुकी बोल्यो, शुं करुं भाइ ! कोइ म्हारे कामना नथी, सोनानी छरी पासे राखवानी होय, पण पेटमां मारवानी न होय, एटले अज्ञान काठीयो दसमो हतो ते बोल्यो के, बस करो! महाराजा बस करो! अमारु शिर पण आपने माटे झुमझुमी रयुं छे. आपनी आज्ञा लइने जाउं छु अने धर्म करनारने तोडी पाडी, विजयपताका मेलवी हालमां पाछो आq छु. ए प्रकारना वचनो सांभली मोहे तेने साबाशी आपी विदाय कों, एटले तेणे जइ धर्म श्रवण करनाराना शरीरमा प्रवेश एवा प्रकारे कर्यो के, क्षणमात्रमा तेना साडा त्रण क्रोड रुंवाडामां, क्षीरनीर प्रमाणे अज्ञान काठीयो ओतप्रोत थइ गयो. तेथी भमेल भूतना पेठे ते जीव विचार करवा लाग्यो के, आ गुरु शुं बबडे छे, शुं वांचे छे, तेनी काइ खबर पडती नथी. आवा व्याख्यान वंचाता हशे के, चाल जीवडा उठ घरे चाल ! घरनुं चूक ते शा कामर्नु छे. व्याख्यान व्याख्यान करीने गुरुये अने लोकोये जीव लीधो, अने इंहां तो कांइ तत्त्वए नथी, प्रथम तो खबर ज नथी पडती. खबर
451 Ayyyay!
१४
ias