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________________ चौमासी व्या ख्यान ॥ सी ते ॥ ७८ ॥ व्या या ठी मने आवा संकटमां केम नाख्यो ! विगेरे प्रकारनी उपाधिग्रस्त थइ शोक सागरमा डुब्यो, माथु हाथमां राखी नीचुं मोढुं करीने रह्यो अने सर्व भान भुली गयो. शोके बराबर घेर्यो अने उथलावी नाखी, जय मेळवी खुशी थयो. एटलामां वली कांइ चेत्यो, विचारखा लाग्यो, दारुडीआना पेठे में आ शुं विचारो कर्या, पुद्गलीक सुखनी में ममता करी ते जूठी छे, जीवो पुन्य कर्म करवाथी राज्यऋद्धि रमणी भोग भंडार हाथी घोडा विगेरे मेलवे छे, तुं पुन्यकर्म करे तो तने पण मले, धर्म सर्व कोइनो छे, तेने जे आदरे ते सुखी थाय. आयुष्य मेघना गर्जाखना पेठे क्षणिक छे, लक्ष्मी पाणीना कल्लोलोना पेठे चंचल छे, वैभव हस्तिना कानना पेठे अस्थिर छे, कयो मूर्ख माणस होय, के विनाशि सुखनी आशा करे अने शोक समुद्रने विषे डुबे ! प्रथम कर्म करती वखते विचार करवो अने वगर विचार्ये कर्म कर्या पछी, उदय आवे त्यारे संताप करवाथी शोक वधे छे अने शोक करनारा मानवोने नरकनी छाप कहेली छे. शोकी माणसने कोइपण प्रकारनुं सुख होतुं य नथी, माटे तुं सावध था, शोक छोडी दे अने पुन्य मेलव, के तने मनइच्छित सुखो मले अने तुं सुखी था एम विचारी भा शोकने निवारी धर्मोपदेश श्रवण करवा बेठो. वली ते समाचारनी मोहराजाने खबर पडवाथी छाती कुटी पोकार पाडवा लाग्यो के अरे ! कोइ छे के, एटले अज्ञान काठीयो हाजर थयो अने हाथ जोडी मस्तक नमावी बोल्यो के आपनी शी आज्ञा छे, एटले जे होय ते फरमावो, त्यारे मोहराजा बोल्यो के शुं तमने खबर नथी. म्हारा नव सेनापति जीताणा छे. हवे म्हारा हाथ पग भांगीने हेठा पडवा आव्या छे, पेटनी पीडा कोने कहेवी, आ तो कहेवत छे के, पडी तेने पीडा अने वायुं तेने वेदना, ए उखाणावाळी वात थह छे, मने हाय हाय छे अने तमे बधा तन्कारा करो छो. आ पेलो जिनेश्वर महा नुं तेर काठीयानुं र स्वरूप ॥ न स्व 品 प i2 111211
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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