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चौमासी मा निर्मल अध्यवसायरूप करणी करवामां आवे छे, तथा सर्व जीवोने विषे तेमज सर्व वस्तुने विषे सम परिणाम आत्माना थाय छे. व्या- तेनुं नाम ज सत्य सामायिक कहेवाय छे, अने ते ज अर्थने शास्त्रकार महाराजा विशेषपणाथी नीचे मुजब पुष्ट करे छे. उक्तं चनिंदा पसंसासु समो, समो य माणावमाणकारिसु । समसयण परियणमणो, समाइयं संगयं जीवो ॥१॥ भावार्थ:- जे जीव निंदा कोइ करे तो तेना उपर द्वेष करतो नथी, अने कोइ प्रशंसा करतो होय तो तेना उपर राग करतो नथी, पण बन्नेना अंदर समान वृत्ति धारण करे छे, तथा कोइ मान आपे तो पण राजी थतो नथी, तेमज कोइ अपमान करे तो तेना उपर रीस करतो नथी, ने ते बन्नेना उपर समवृत्ति राखे छे. तथा स्वजन वर्ग अने बीजा परलोकने विषे म्हारा हारानुं चित्त नहि राखता बन्नेने विषे समानवृत्ति धारण करनार जीव, सत्य सामायिकने करनार कथन करी शकाय छे. वली पण कधुं छे केः
जो समोसव्वभूएस) तसेसु धावरेसु य । तस्स सामायियं होइ, इमं केवलिभासियं ॥ २ ॥ भावार्थः — जे माणस त्रस अने स्थावरादि सर्व भूत प्राणियोने विषे समानवृत्ति धारण करनार होय तेने ज सामायिकनो लाभ मले छे, ए प्रकारे केवलज्ञानी महाराजे कथन करेल छे. तेथी ज सुज्ञ जीवोये वीतरागे कथन करेल मार्गनुं आलंबन करी सामायिक करवाथी परम लाभ थाय छे, वली सामायिक लइने बेठेल गृहस्थ माणस पण साधु तुल्य थाय छे, कछु छे केसामाइयं मि उकए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा। एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥ १ ॥ भावार्थः – सामायिक लइने बेसनार माणस सर्व सावद्य कर्मने त्यागीने बेसे छे, अने तेज कारणथी ते श्रावक साधुना
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