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कल्याणक तिथियो, पूर्णिमा, एक मासने विष बे चौदश, वे आठम, अमावाश्या तथा पूर्णिमा, आ छ तिथियोने चारित्रनी तिथियो कहेली छे. आ तिथियोने विषे चारित्रनुं आराधन करवू. शीलांगाचार्यादि गीतार्थ महा पुरुषोये आदरपूर्वक आराधन करेल छे माटे इहां कल्याणकनी तिथियो, तीर्थंकर महाराजादिकनी कल्याणकनी तिथियो, तथा पर्युषणनी तिथियो लेवी, तथा बीज, पांचम, आठम, अग्यारशने, ज्ञानतिथि गणवी. आ तिथियोने विषे ज्ञान- आराधन करवू अने अन्य दर्शननी तिथियो जे छ, तेमां दर्शननुं आराधन करवू, एवी रीते सम्यक्त्व धारी जीवोये मिथ्यात्वना परिहार पूर्वक देवपूजा, गुरुभक्ति, जिनेश्वर महाराज कथित आगमर्नु श्रवण, धर्मकियानुं अनुमोदन, तीर्थयात्रा करवी, तेमज जिनेश्वर महाराजना कल्याणकोनी भूमिने स्पर्शादिक करवू. विगेरे कर्तव्योथी निरंतर भव्य जीवोने सम्यक्त्व निर्मल करवु जोइये. कथु छ के
जम्मं दिक्खा नाणं, तित्थयराणं, महाणुभावाणं। जत्थ य कयनिव्वाणं, अगाढं दसणं होइ ॥१॥
भावार्थ:-जे ठेकाणे महानुभाव श्रीमान् तीर्थकर महाराजाओना जन्म, दिक्षा, ज्ञान अने निर्वाणादिक थयेल होय ते ठेकाणे दर्शन, वंदन, नमन, पूजन, स्तवन, स्पर्श विगेरे करवाथी अगाढ दर्शननी प्राप्ति थाय छे, किंबहुना तीर्थकर महाराजाना पांचे कल्याणकोनुं आराधन भव्य जीवोने दर्शन शुद्धि करावी शीघ्रताथी मोक्ष सुख आपे छे. हवे इंहां प्रथम सामायिकना स्वरूपने कहे छे. सम्यक् प्रकारे राग-द्वेष रहित जीवने जेना अंदर ज्ञानादिक गुणनो लाभ थाय छे तेनुं नाम सामायिक कहेवाय छे. अने ते अंतरमुहूर्त बे घडीना काळरूप सामायिकने करनार जीव मन, वचन कायाना योगे एकत्र करी स्थिर चित्त अने प्रशान्त मन करी राग-द्वेषना परिहाररूप अने ज्ञान, ध्यान, क्रियाकांड युक्त जे आत्माना