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________________ थायने ! अने बीजाना खराखोटा सांभळवा पडेने ! एवो विचार करे छे, तेमां वली श्रावकोये एक टीप गुरु महाराजना उपदेशथी शरु करी, ते देखी कृपणना काकाने पेटमां शूल उभी थइ अने आधो जइने एक बाजु बेठो, अने कृपण काठीयाये पूर जोरशोरथी जकडेल होवाथी वली विचार करवा लाग्यो के, आ बला क्यांथी वलगी, नवरा नखोद रोजे टीपो लइने | बेसे छे, तो अमने ते भीख मांगता करवा छे के ? तेणे धायुं छे शुं? आनी मने कांइ समजण पडती नथी. लोहीन पाणि करवाथी एक पैसो मले छे अने इंहां तो नवलशा हीरजी लाखो लुटाय छे. हवे केम कर, साधु चोटशे, श्रावक चोटशे, ना पाडीशुं तेमां कांइ आपणी आबरु जवानी नथी. घरना छोकरा घंटी चाटे, अने पाडोशीने आटो, आ तो एवी वात बने छे. जरा भभको देखे, एटले लुटवानी वातो. परदेशथी आव्याने मोतीडे वधाव्या, खर्ची खुटी ने टाणे सधाव्या; आतो आ उखाणावाली वात थइ छे वळी छप्पन्न वखार ने भारो कुंची, वेपार थोडो ने नजरो उंची. एवा प्रकारचें अमारे छे अने आने तो पैसा ज पडाववा छे, पण आपणे तो एक पाइ पण तेने आपवी नथी, आवो | विचार करीने ते कृपण वेगलो बेठो छ, तेना पासे श्रावको खरडो लइ गया, एटले वली पाछो विचार सारो आव्यो के, गुरुमहाराजने आना अंदर कांड नथी, ते तो परोपकारी छे, परोपकार माटे उपदेश आपे छे, ते मानवो न मानवो श्रावकोने हाथ छे, लोभ महा बुरो छे, लोभ चंडाल छे, लोभथी केइक समुद्रमां, केइक गिरिवरोमां, केइक वगडामां, अटवीमां, केइक 卐yyy卐卐y卐卐!
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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