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________________ चौमासी व्याख्यान । 卐 ॥७६॥ 卐g卐9卐13 हिंसक प्राणियोना फंदमां रखडथा छे, फसाया छे, दुखी थया छ, तिर्यच नरकमां गया छ अने इहलोक परलोकमा बहुज | तेर दुःखी थया छे, ते कहेवु गुरुमहाराजनुं व्याजबी छे, ते शास्त्रकार महाराजानुं वचन छे, कांइ ते गुरुमहाराजना घरनुं नथी, 9 काठीयार्नु माटे मारे पैसो टीपमां भरवो ज जोइये, म्हारो पुन्यनो उदय हशे तो ज पैसानो लोभ छुटशे अने सारे मार्गे वपराशे, खरूप अढारे पापस्थान सेवी लोकोना गळा कातरी पैसो भेगो करेल छे, ते पुन्यदान नहि करूं तो, टकशे केम. हुं अने कुटुंब बधा नरके जइझुं, माटे लोभने तोडी पैसो टीपमां म्हारे भरवो उचित छ, वली हुं पैसो वधारे टीपमां भरीश, तो वीजा लोको पण सारी रीते भरशे, तेथी रकम वधारे थवाथी महा पुन्यनो भागीदार थइश ! काल सवारे आंख मींचाइ जशे, तो हाथ घसतो नरके जइश अने पछाडी कागडा कुतरादिवाली थशे, माटे लोभ छोडी देवो, आम समजी कृपणता त्याग करी उदार थइ मोटी रकम भरी, ते जोइ शेठीयाओये अने गुरुमहाराजे तेने धन्यवाद आप्यो के धन्य छे ! धन्य छे ! तमारी निर्लोभताने ! धन्य छे तमारा मातपिताने ! आवी अढलक लक्ष्मी वापरी देवलोकना आयुष्य बांधो छो! अने मोक्षमां पण जल्दी जशो, हवे तमारे स्वर्ग मोक्ष दुर नथी, आवी रीते लोकोये कही, तमाम शेठीयाये पोते पण सारी रकम | भरवाथी एक जबरजस्त रकम थइ अने तेथी अनेक प्रकारना धर्मना कार्यो संपूर्ण थया. हवे मोहराजाने खबर पडी के सातमा कृपण काठीयाने पण जीतीने भव्यजीव धर्म सांभळवा बेठो, तेथी ते धर्म श्रवण करी संसारने तरी जशे, माटे तेने दुर्गतिमां नाखवानो उपाय करूं (दुनियाना जीवोनी ते स्थिति ज छे के, परायु सुख देखी बळवं, पण राजी तो न ज थq ) एज न्यायथी मोहराजाने वली चटपटी थइ, मुखेथी हुंकारपूर्वक निःश्वास ॥ ७६॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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