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________________ चौमासी व्याख्यान ॥ y M७५॥ 卐ASHAyyyy पधरावो. मूर्तिना पछाडी चांदीनी छत्रीयो करावो. माथे छत्रो धरावो, छडी चामरो मंगावो, धूप धाणा करावो, आंगीयो मुकुट बाजुबंध कुंडल कंदोरो श्रीफलो करावो, चक्षु टीला जडावो, पाट पाटला सिंहासन करावो, भंडार करावो, उजमणाकाठीयार्नु करावो, चंद्रवा पूठीया तोरण भरावो, मखमलना पाठा बनावो, ज्ञानना पुस्तको लखावो, छपावी, साधुओने कपडा र ! स्वरूप॥ | कामलीयो, औषधिपात्रना दान आपो, संघ कढावो, तीर्थोद्धार करावो, ज्ञानोद्धार करावो, दानशाला दवाखाना व्याख्यान होल बंधावो, संघ स्वामी भाइयोनी भक्ति करो, पहेरामणी करो, जीवदया पालो-पलावो, माछलानी जाळो छोडावो, घांचीनी घाणीयो छोडावो, अमारीनो पडह वजडावो, दान आपो, पुन्य करो, पैसो वापरो, हाय ! रोज उठीने लोइ पीधा. फलाणुं करो, ढींकणुं करो, पुंछड़े करो, मुशल करो ! पण केवी रीते करवु ? पैसो ते काइ वाटमां पडयो छे ! एक पाइ पेदा करता पूंठे रेलो आवे छे, ने आ साधु तो हाथपग धोइने अमारा पाछळ ने पाछळ लागेला छे. एमने बोली नाखवू छे, पण कमावा जq होय तो खबर पडे के, केटली वीशे सो थाय छे, तेनी तेने खबर शानी पडे, कोइक दिन काइक, अने कोइक दिन कांइ, नाटकीयाना पेठे नवा नवा वेष अने किस्सा काढ्या ज करे छे. कोइक दिवस कहे छे के धर्म मार्गमा पैसो वापरनार तीर्थकर थाय छे, चक्रवर्ति थाय छे, वासुदेव, बलदेव, मांडलीक, राजा सुखी धनाढ्य थाय छे, इंद्र नागेंद्र, देवेंद्र थाय छे. वली कोइक दिन कहे छे, लक्ष्मी पापी छे, नथी खर्चता ते नरक निगोदमा जाय छे. वली कोइक दिन कहे छे, तेना उपर मोह करनार मरीने तिथंच थाय छे, तेना उपर फणिधर मणिधर थाय छे. म्हारुं बेटु रोज नवनवा किस्सा. ए गुरुने मोढे चोकडुये नथी रडुं, म्हारा भाइ, ए धर्म सांभलवो रह्यो. इंहां आवQ ज नहि. आवीये त्यारे ज लमणाफोड Myyy))) पैसो वापनाका, नाटकीयाना पेठे ना , केटली वीशे सो थायापार ॥ ७५॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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