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| उठवानुं बल कयु, ते सावध थयो अने विचार करवा लाग्यो के हा हा! में गुरुमहाराजनी आशातना करी, इंहां म्हारे उंघर्बु न जोइये, आ निद्रामां म्हारी शुद्धबुद्ध रही नहि, व्याख्याननो शब्द काने पडयो नहि, भगवानना वचनो छे के निद्रा महा पापीणी छे, निद्रा पिशाचीनी छे, निद्रा पुन्य खजानो लुटनारी छे, किंबहुना निद्रा सर्वने घात करनारी छे. हा हा हा ! में अनर्थ कयों, भगवानना भाखेल वचनोने भूली गयो. भगवान महावीर स्वामी महाराजा, ज्ञानि एवा गौतमस्वामी जेवा महात्माने पण कहे छे के, हे गौतम! एक समय पण प्रमाद कर नहि, प्रमादथी तप जप ज्ञान ध्यान क्रियाकांड संयमादिक गुण गणो नाश थाय छे, एटलं ज नहि पण चौद पूर्वधरो पण निगोदमां उतरी गया छे माटे क्षण मात्र पण प्रमाद नहि | करता आत्महित करवामां तत्पर रहेवू ते ज कल्याणकारक छे. आवी रीते पश्चाताप करी, दुर्गति दूर करी, सद्गतिमा पहोंचाडनारा धर्मनुं शरण लेवा धारी, प्रमादने मारी तोडी, तेनी जडमूळ उखेडी, वीजलीना समान अस्थिर जीवितव्यनो सार मेलववा सज्ज थइ धर्म श्रवण करवा लाग्यो, वळी ते वातनी मोहराजाने खबर पडवाथी महा चिंता उभी थइ. ते | विचार करवा लाग्यो के जुलम थइ गयो. जेणे देवताओने पण डोलाव्या छ, तेवा म्हारा छ सेनापतियो तो जोतजोतामां जीताइ गया. हवे म्हारे शुं करवू, अगर चिंता करवानें काम नथी, उद्यम सुखनुं मूळ छे, माटे उद्यम करवो एम धारी तेणे कृपण नामना सातमा काठीयाने मोकल्यो, तेणे एकदम धर्म श्रवण करनारना शरीरमा धसारो करी प्रवेश कयों, तेथी वली तेनी बुद्धि व्हेर मारी गइ अने विचार करवा लाग्यो के, रोज उठीने आ होळी, आ साधुने तो कांड धंधो ज नथी, रोज उठीने ए ज उपदेश दे छे, तमो पैसो वापरो, पैसा वापरो, सात क्षेत्रमा पैसो वापरो. जिन मंदिर बनावो. अंदर मूर्तियो
-gaya