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________________ म | चौमासी व्याख्यान ॥ तेर काठीयार्नु स्वरूप॥ ॥७३॥ 1434345 बापा करता आवे छे अने अत्यारे आ साधुना हांजीया हां थइने बेठा छे, कांइ दुनियादारीनुं भान पण नथी के, आ शेठ पधार्या छे, माटे सरेडे चडावी, तेनुं मान वधारीये ! ते तो नाना मोटानी मर्यादा ज नथी अरेरे ! हुं कोण ! म्हारं कुल कोण ! म्हारूं घर कोण ! म्हारी आबरु कोण ! भठ पडो आवी समाने ! म्हारे तो धर्म सांभलवो नथी. ए धर्म सांभल्या विना म्हारे चालशे, पण आवरु मानपान प्रमाणे मानयश नहि मले तो म्हारे चालवानुं नथी, आवी रीते चितवना करी उठवा मांड्यो, एटले बली विचार सारो आव्यो. एटले चिंतवना करवा लाग्यो के, अरे पागल जीवडा ! मदिरानुं धेनबेन तने चडधु छे के शुं? साधु महाराज हारा बापना देवादार थोडा हता! ते तने मान आपे! वली चालता व्याख्यानमां तने धर्मलाभ आपे तो, तारा जेवा तेरसो तेंतालीश व्याख्यानमा आवे, तो बधाने धर्मलाभ आपे तो व्याख्यान क्यारे अने | केवी रीते वांचे! त्हारे जq होय तो जा, चाल्यो जा, गुरु महाराजे क्यां तने तिलक तेढुं करीने तेडवा मोकल्यो हतो, त्हारी सांभलवानी गरजे आव्यो हतो! तो न सांभळq होय तो जा उठ, आ रस्तो पडयो. तेमां तने गेरफायदो थशे. कांइ गुरु महाराजनुं जवानुं नथी. ते तो कोइने आदरमान देता नथी. तेने तो गरीब तवंगर नाना मोटा रंकराजा बराबर छे, तेने तो सर्वे सरिखा छ, तेने तो रागद्वेष काइ नथी, तेने तो हरकोइ प्रकारे लोकोने धर्मी बनाववानुं छे, तो अभिमान करी फोगट व्याख्यान गुमाव्युं, अने तुं त्हारो धर्ममार्ग भूल्यो, हजी पण स्थिर थइश तो तने लाभ मलशे, गुरु पासे नाना मोटा करी अभिमानी थर्बु ते धर्म धननी हानी माटे ज थाय छे ! मोटाइमां मरवु, तेना करतां गुणीजनोना गुणोनुं अनु- | करण करवू तेमां ज शोभा छे, माटे अहंकार छोडी हजी पण धर्म सांभळ के, त्हारा आत्मानुं कल्याण थाय. आवी रीते | 3925999 ॥७३॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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