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________________ मा अहंकारने हांकी काढी, वळी शान्तिथी धर्म सांभळवा बेठो, ते वातनी मोहराजाने खबर पडवाथी वळी तेमणे क्रोध नामना पांचमा काठीयाने मोकल्यो, तेणे जइ ते भव्य जीवना शरीरमां प्रवेश करवाथी वळी ते उल्लंठ थयो अने विचारखा लाग्यो सी के, अरे ! इंहां तो म्हारा दुश्मनो छे, तेने पण बेसवानुं ठेकाणुं मळे छे, म्हारा दुश्मनो जोडे म्हाराथी बेसी केम शकाय ! शुं करूं, इहां साधु अने सभा छे ! नहि तो म्हारा दुश्मनोनुं हमणां गळं पकड़े ! दुश्मनने मारवामां ज पुन्य छे, आवो विचार व्या आणी क्रोधथी धमधम्यो, शरीर कंपवा लाग्युं, चक्षु लालचोल थइ गइ. क्रोधे जाण्युं के आपणो अमल बराबर थइ गयो छे ! आपणे जीति चूक्या छीये, हवे कांइ फीकर नथी. एटलामां तो वळी तेने विवेक आव्यो अने तेथी ते विचारखा लाग्यो, अरर ! 5 आ में शुं चिंतयुं ? हुं कइ भूमिपर हुं हुं कोना प्रत्ये क्रोध करुं हुं ! क्रोधथी क्रोड पुरवनुं संयम होय तो पण नष्ट थाय. क्रोध महा जाज्वल्यमान अनि जेवो छे, सर्वे गुण श्रेणिने बाळी भस्मीभूत करे छे, पोते तपे छे अने बीजाने तपावे तेवो क्रोध छे. वळी क्रोध पोते बळे छे अने पासेनाने बाळे छे. अवगुणो प्रगट करे छे, गुणोने ढांके छे, पोते आंघलो बने छे अने बीजाने बनावे छे: क्रोध महा पापीयो छे. क्रोधी पोते बुडे छे अने बीजाने बुडाडे छे. क्रोधी पोते दुर्गतिमां पडे छे अने सामाने दुर्गतिमां पाडे छे. सरल मार्गने क्रोधी बाळी दे छे. क्रोधी माणसनुं कोइ पण भवमां कल्याण थतुं नथी. षां स्वर्ग मोक्ष तो शुं पण मानव जन्मने क्रोधी माणस पामी शकतो नथी, माटे हे जीव ! तने घिकार छे ! कोइ त्हारा शत्रु क नथी, सर्वे त्हारा मित्रो छे. बीजी जग्यामां पण कोइना उपर अने वळी पोताना स्वामी भाइयोपर तो विशेषे क्रोध करवो त जोइये नहि, वळी आ धर्मनी जग्या छे. तो इहां क्रोध करवाथी श्रीगुरु महाराज तथा श्री संघनुं अपमान थाय ! अरे तुं भा स्व
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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