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________________ चौमासी व्याख्यान । 卐 44 काठीयार्नु स्वरूप ॥ ॥७२॥ बेठो. एवामा मोहराजाने खबर पडवाथी आकलविकल थइ हैयाभफ लेवा मांडथो अने तेने जीतवाने माटे, अवज्ञा नामना, त्रीजा पोताना सेनापतिने मोकल्यो, ते त्रीजा काठीयाये आवी तेना शरीरमा प्रवेश करवाथी, वली भव्य जीवनी बुद्धि भ्रष्ट थइ. अरे ! आ शो उत्पात ! दुनिया कहे छे के साधु भाइडा कोइना नहि, ते साची वात छे, घरने विषे मेमान परोणा आवे छे, तो बोलाव, चलावq, खवरावQ, पीवरावq, नवाडवू, धोवाडवू, सुवाडवू, अने सुखदुःखनी वातो कहेवी, पुछवी, विगेरे विगेरे केटला प्रकारनी भक्ति जुक्ति होय छे अने आ तो साधु थया एटले कांइ ज नहि, बीजूं तो उंधी गयुं, पण एटलं तो कहेवू जोइये के, आवो भाइ बेसो, तेमां बेसो कहेवामांथी पण गया, वली आगल आवेला पण मने कहेता नथी के भला भाइ आगल आव, तुं बेठो उभो छे त्यां तो खासडा पडेला छे, माटे साधुने श्रावक सरिखा ज छे, कोइने व्यवहारनुं तो भान ज नथी, घरबार व्यापार वणज छोडीने आव्या, तो पण आनी आ दशा. बाइडी छोकराने त्यागीने आव्या तो पण आवी अवज्ञा ने अवज्ञा ज, बस कांइ ज नथी, बधुं बगडी गयु. कोइमां कांइ ज प्राप्ति रही ज नथी, विगेरे खराब बुद्धिथी चेतना नष्ट थइ अने मनमां ने मनमा अवज्ञाना वचनो बबडवा मांडयो. देख्या देख्या साधु ! आना करता आपणुं घर ज भलं. अवज्ञाये जाण्यु के, आपणो जय हवे थइ चूक्यो, फिकर नथी, मोहराजा पासे जइ हमणां इनाम मेलQ छु. एम जेवामां अवज्ञाकाठीयो मलकाय छे, तेवामां वली महामुशीबते विचार बदलाणां अने विचार करवा लाग्यो के, अरेरे ! हुं महा मूर्ख छु, म्हारे धर्म सांभलवानी गरज हती, तो म्हारे वहेलु आवQ जोइये, ते तो नवराश नथी ने मुनि || महाराजनी निंदा करुं छु, तो म्हारा जेवो अज्ञानी कोण! वली मुनि महाराजनो तो आव जाव कहेवानो धर्म नथी, तेम 4. 卐9 4卐ngs
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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