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________________ नजाउं छु. वली बाजा छ ! आखी दुनाये संसारमा रही अने बाइडी तपी गइ छ, तेने रीसावीने जवाय पण केवी रीते ! माटे हमणां तो मने काइ सुजतुं नथी, माटे आवा कटा| कटीना वखतमा हुं धर्म सांभलवा केवी रीते जाउं, आवी रीते मोहमां मुंजायेल आदमी क्षण मात्र चक्षु मींची विचार | करवा लाग्यो के, अरे जीव ! तुं आ शुं विचारे छे! तुं स्त्री बालबच्चाना मोहमां मोहित शाने माटे थाय छे ! तेनी उपाधि तने मरता सुधीमा कये दिवसे मटवानी हती! बार मासे वे वर्षे एक एक वधता ज जाय छे ! तेने पाळवामां ने वधारे कमावामां, धंधो पण हुं धपाव्ये ज जाउं छं. वली बाइडी पण दुकानना कामनो बोजो छतां, घरना कामनो बोजो म्हारे माथे अवनवो नाखती ज जाय छे ! माटे आ सर्वे स्वार्थना सगा छे ! आखी दुनियाने बाइडी छोकरा व्यापार घंधो वलग्या छे, | के मने एकलाने! माटे म्हारे मोहमां एकदम आंधळा बनी जवू लायक नथी, बधाये संसारमा रही व्यवहार, नीति अने धर्मना कामो करे छे ! तो हुं शुं कामे म्हारो धर्म हारी जाउं, आटला दीवसथी बधु करतो आबु छु, तो बधुं सचवाय छ के नहि ! त्यारे आजे शुं कामे म्हारो धर्म लाभ नाखी दउं! खोइ ना! हुं घरे होइश तो ज छोकरा छाना रहेशे के ! आ तो बधुं पोलं देखीने लाकडं वधारे पेसे छे, वली म्हारे कांइ सारो दिवस तो त्यां बेसी रहेवू नथी. घडी बे घडीनुं काम छे ! आवो रत्नचिंतामणि समान जैन धर्म अने कल्पवृक्ष समान गुरु महाराजनो संजोग कांड वारंवार मलतो नथी, माटे चाल जीव उभो था! थतुं हशे तेम थया करशे! त्हारे मूर्खाइ करी हाथमां आवेल अमृतनो धुंटडो छोडी देवामां फायदो नथी! माथा फोडता होय तेने फोडवा दे! गुरु महाराजनी वाणी वे घडी सांभळी मनखो पवित्र करवा दे ! आवो | वखत फरी फरी वारंवार नहि आवे! एम विचारी सर्वने छोडी दइ चाल्यो, अने गुरुना पासे जइ वंदन करी धर्म सांभलवा वाय छ | 卐卐卐卐5. 卐Myyyyyyy)
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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