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चौमासी
व्या
ख्यान ॥
॥ ७१ ॥
का
सांभलवा पण जवा देवामां नहि आवे, माटे बेसो इहां रमकडा लावो ! खावानुं लावो ! लुगडा लावो ! नवरावो ! धोवरावो ! एरींग घडावी दो ! चुडी मढावी दो, ढींगली बनावी आपो ! विगेरे विगेरे अनेक कदर्थनाथी धर्म श्रवण करवो भुली गयो, वली छोकराओ कहेवा लाग्या के, काले तो कहेता हता के, नवा चित्रो तमारा माटे लावीशुं, माटे ते लावो नहि तो अमे रोइयुं, बस ओ ओ ओ लावी आपो, घरना बहार पगलुं भरवा नहि दइये, वली तेनी स्त्री आवीने कहेवा लागी के, तमो शुं करो छो ! क्यां जाओ छो ! तमारी ते अक्कल कांइ ठेकाणे छे के नहि, तमारुं ते भान बल्युं छे के नहि ! आखो दिवस देहरूं देहरुं उपाश्रय ! उपाश्रय, करीने रघवाया थइ गया, पण आ छोकराओ खाशे पीशे शुं ? म्हारा काळजा ! पहेरशे ओढशे शुं ठीकरा ! आ चाल्या पण छोकरा रोशे तो साचवशे कोण ? मने ते कांड़ कामधंधो हशे के नहि ! हुं ते रांड ठी एकली शुं करूं ! आ पेट पडेलाने पाळवा, के मारखा ! तमने तो कांइ धंधो ज नथी, पण घर मांडीने बेठा छो, तेनुं कांइ सुजेछे ? माटे जाव जोइये, लगार व्हार जइने छोकराने रमाडी आवो ! घडीक हेखो फेरवो आ गगीनी घोडीयानी जरा दोरी खेचता जाओ, छोकराने कांइक खावा अपावो ने वधारे पैसा पेदा थाय एवो उद्यम करो, पछी देहरे उपाश्रये जजो, आवी रीते कही चेनचाळा नखरा एवी रीते कर्या के, भाइसाहेब टाढाटम् थइ गया, ने बधुंये भूली गया. मोहमां मुंझाइ गया, राणी सरकारना वचन वाणथी विधाइ गया. छोकराओरूपी नागपाशथी वींटाइ गया. एटले हवे विचार करवा मांड्यो के, वात तो बाइडीनी कहेवी खरी छे. बधी वार कांइ बैराओ बधुंये जूटुं न बोले, धर्म सांभलवा जवानुं तो मन घणुंये थाय छे, पण शुं करूं आ जंजाल जबरी चोटी छे. ते मुकीने जवाय पण केवी रीते, आ बालबच्चाने रोताये केम मुकाय !
षां
रू ॥ ७१ ॥
मा
सी
व्या
भा
त
र
या
तेर
काठीयानुं
स्वरूप ॥