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चौमासी व्याख्यान ॥
। तेर काठीयार्नु
स्वरूप॥
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तैयार थाय छे. आवा मोहराजाना वाक्यने सांभळी प्रथम आलस नामनो काठीयो उभो थयो अने मोहराजाने नमस्कार | करी कहेवा लाग्यो के, स्वामिन् ! कोइ बीजार्नु काम नथी, हुं एकलो ज जइने तोडी पाडीश ! शुं तेने म्हारा पराक्रमनी खबर नयी! मोहराजा बोल्यो साबाश! म्हारा शूरा सरदार ! साबाश! हुं तने पिछाणुं छु के जगतने धूजावनार तुं एक ज छे, जा जा, वीर ! वेगे जा ! दुश्मनोनुं जडमूल काढी वेहेलो आवजे ! तने मार्ग कल्याणकारि हो ! सभा सर्व देखे छ, ने मोहराजाये आज्ञा करेल आलस नामनो काठीयो सभाथी ब्हार नीकल्यो अने गुरुमहाराज पासे धर्मश्रवण | करवा जनाराना शरीरमां शीघ्रताथी पेठो. जेम मदिरा ने धंतुराना पानथी चेतना नष्ट थाय, तेम भव्यजीवनी बुद्धिरूपी चेतना नाश पामी, एटले आलस आववा मांडो, आवी रीते थवाथी भव्यजीव अंग मरडवा मांडयो, बगासा खावा लाग्यो, हाथ पगना आंगला मरोडी टचाका फोडवा मांडयो, डचकारा करवा लाग्यो, उभो थइ पग तरछोडवा लाग्यो अने विचार करवा लाग्यो के, ठीक त्यारे जइये छीये, जवाय छ, थाय छे, हजी तो घणो टाइम छे, अत्यारे आलस थाय छे. तो काले जइशें, हजी तो गुरुमहाराज आजे ज पधार्या छे माटे आज नहि तो काले पण जइश. तेमां चूक पडवानी नथी हशे त्यारे संसारी जीवडा छीये, रोजे कांइ आपणाथी थोडो ज धर्म सांभली शकाय तेम हतो! आजे तो आलस आवे छे, आवी रीते पोताना सज्जड प्रतापे आलसे तेना उपर संपूर्ण साम्राज्य चलाव्युं अने तेथी मंदता धारण करी रह्यो, एटलामा विवेक मुसदीये, तेमना शरीरमा प्रवेश कर्यो, तेथी वली विचार बदलाणो, अने चितवना करवा लाग्यो के, अरे मूर्ख! त्हारी ते बुद्धि बली गइ छ के ! कोइक दिवसे धर्मगुरु मल्या, तोये तुं हजी काल काल करे छे ! तने खबर छे के काले शुं
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