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थती नथी, कदाच वैभव मल्यो तो, स्थायीभावे नहि रहेता स्वल्प समयमां द्रष्ट नष्ट थइ जाय छे, लक्ष्मी पाणिना परपोटा समान छे, जेम पाणिमां प्रगट थयेल परपोटो क्षण मात्रमा विनाश पामे छे, तेम ज मानवोनी लक्ष्मी पण चिरकाल रहेती नथी, अने अढारे पापस्थानो सेवी जे लक्ष्मी उपार्जन करवामां आवे छे, ते केवल जीवोने दुर्गतिमां लइ जनारी छे, एवं समजी महानुभावोये न्याय नीतिथी लक्ष्मी उपार्जन करी, देव गुरु धर्म, सात क्षेत्र, परोपकार, दीनदुःस्थित, स्वामीभाइयोनी भक्ति, ज्ञानोद्धार, तीर्थोद्धारादिकने विषे खर्ची वैभव पाम्यानुं सार्थक करवू ते ज श्रेयस्कर छे. वली वैभवने चोरो चोरे छे, अग्नि बाले छे. भागीदारो लुटे छे, राजा दंडे छ, यक्षो हठथी पण हरण करे छे. आवा अनित्य वैभवना स्वरूपने जाणी, सुज्ञ जीवो तेमां ममत्वभावने धारण नहि करता, परलोकने विषे हितकारी थाय तेवा मार्गमा जोडवाथी सुखी अवस्थाने पामे छे, बली मरण तो निरंतर साथे ज फरे छे. आ मोहि जीवडो एम मनमा समजे छ के, हुं बधुं परवारीने मरण पामीश, पण तेने खबर पडती नथी के, आयुष वीजलीना जबकारा समान चंचल छे. जेम वीजली क्षण मात्रमा द्रष्टनष्ट थाय छे तेम ज आ दुनियामां जीवो पण लगार वारमा मृत्युने शरण थइ हता होता थइ जाय छे. माटे ज उत्तम जीवोये दिनप्रतिदिन धर्मनो संग्रह करवो. जीवोने समग्र सुखो अने सामग्री मल्या छतां पण, प्रमादी बनी धर्मक्रिया न करे तो ते पाछलथी बहु ज पश्चातापना भोक्ता थाय छे. प्रमाद प्राणिओनो शत्रु छे, प्रमाद परम द्वेष करनारो छे, प्रमाद सुगतिनो नाश करी कुगतिना अंदर लइ जनारो छे. प्रमाद एवा प्रकारचं दुःख आपनारो छे के, तेनुं वर्णन करवू थोडा टाइममा बनवू संभवित नथी. कदाच जीवो प्रमाद त्याग करे, तो पण तेने मोहराजाना तेर सेनापतियो, आडा आवी अंतराय करे छे, ते
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