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________________ s चौमासी व्याख्यान || सी काठीयार्नु खरूप ॥६८॥ नरमेध, स्त्रीमेध, पशुमेध, गोमेध, अश्वमेध, अजमेधादिक, जीवहिंसामय धर्मने पामी, तेने अने मुसलमाननी कबरोनी, मानता, पूजा करनारो थाय छे, आवी रीते मानव जन्मने पाम्या छतां पण, कुदेव, कुगुरु, कुधर्मनी उपासना करवावालो थाय छे, तेथी पाछो अनंत संसार रजलनारो प्रायः करीने बने छे, कदाच सुदेव, सुगुरु, सुधनी प्राप्ति पुन्योदयथी मले छे, तो तेमना उपर श्रद्धा थवी बहु ज दुष्कर छे, कदाच पुन्योदयथी रुचि थाय, तो पण धर्म श्रवण करवामां प्रेम बिलकुल थतो नथी, नाटको, भांड, भवाया अने राजधरी, रामलीला, भारतादिक पुराणोना जूठा तडाकामां तल्लालीन बने छे, तेथी शुद्ध धर्म सांभलवानी रुचि थती नथी, कदाच पुन्योदयथी तेम पण बने तो, तत्त्वनी जीणी मोटी वातो समज नहि पडवाथी शुद्ध सद्दहणा | थती नथी, नरक क्या, अने केवी रीते हशे, निगोदमां अनंता जीवो छ, तेनुं प्रमाण शुं ? पाणिना एक बिंदुमां असंख्याता जीवो छे, ते साचु केम मनाय ? देवलोक कोणे देख्युं, व्रत पालवामां केवल कायकष्ट, अने भोगवंचना सिवाय काइपण देखी | शकातुं नथी, अपूर्व करण शुं ? क्षपकश्रेणि शुं? पुद्गलपरावर्तन शुं? पल्योपम अने सागरोपमना द्रष्टांतोनो प्रत्यक्ष आधार कोण, अने केवो, विगेरे विगेरे अनेक शंकाओ कर्या करे, तेथी सद्दहणा थवी मुश्कल छे, कदाच कर्मना शुभ उदयथी सद्दहणा थाय, तो पण आयुष अल्प होय छे अने तेथी ज वीतराग महाराजा महावीरस्वामी कहे छे के, शरीरो अनित्य छे, पिपलाना पाका पांदडा जेवा छे, शरीरोने पडता लवलेश मात्र पण वार थती नथी, माटे भव्यजीवोये शरीरने, क्षण मात्रमा शटनपटन विध्वंस भावना स्वभाववालु जाणी, निरंतर धर्मनो संग्रह करवो जोइये, कारण के असार शरीर थकी धर्मभूत सारतत्त्व छे, ते ज खेंचवाथी मानव जन्म सफल थइ शके छे, वली वैभव पण शाश्वत नथी, वैभवनी प्राप्ति पुन्योदय विना 卐a卐 卐न ६८॥
SR No.034170
Book TitleChaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherJain Sangh Boru
Publication Year1936
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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