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संसारनी वृद्धि करी, दीर्घकाल सुधी भवाटवीमां परिभ्रमण करे छे, काठीयानुं स्वरूप नीचे प्रमाणे छे. धर्मक्रिया करनाराओने बच्चे अंतराय नाखनारा तेरकाठीयाओनुं स्वरूप.
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एकदा प्रस्तावे चरम तीर्थंकर भगवान् श्रीमन्महावीर महाराजा, ग्रामानुग्राम विहार करता घणां भव्य प्राणिओने 5 बोध करता, मिध्यात्वरूपी अंधकारने विषे अंध बनेला जीवोने, पोताना वचनामृत रूपी अंजनशलाकाथी जनसमुदायनी व्या चक्षुने विषे अंजन करी, तच्चरूप नेत्रोमां तेजस्वीपणुं प्रगट करता, कोटाकोटी देवोना समूहथी सेवायेला, गौतमादिक परम
लब्धिमान् अने केवली, मनः पर्यवज्ञानि, अवधिज्ञानि श्रुतकेवली, वादि, विगेरे, चौदहजार मुनि मंडलना परिवारथी, या तेम ज प्रचंड प्रबल प्रखरशील सन्नाह संपन्न, प्रवर्त्तनी चंदनबाला महत्तरादिक, छत्रीश हजार साध्वी वर्गथी स्तवायेला,
समग्र परिवारथी व्याप्त थयेला, राजगृह नगरना उद्यानने विषे आवी समवसर्या, ते समये भगवानने वंदन नमन स्तवन करवा निमित्ते, चोसठ इंद्रो पोतपोताना परिवार सहित त्यां आव्या, एटलामां उद्यानपाले जइ श्रेणिक महाराजने महावीर स्वामी पधार्यानी वधामणि आपवाथी, अति आनंद समुद्रमां स्नान करेला राजाये तेने बहु दान-मान आपी विदाय कर्यो अने पोते भगवान जे दिशामां हता, ते दिशा तरफ सात आठ पगला जड़ भगवानने वंदना करी त्यारबाद स्नानमानथी पवित्र थइ, देदीप्यमान वस्त्रालंकारने धारण करी, समग्र परिवारथी भूषित थइ, पट्टहस्तिना उपर आरोहण करी, वाजिंत्रना नादथी गगनमंडल ने पूर्ण करतो, श्रेणिक राजा भगवानने वंदन करवा चाल्यो. ते समये भुवनपति ज्योतिषी वैमानिक | देवोये समवसरणनी रचना करी, प्रथम वायुकुमार देवताये एक योजन भूमि शुद्ध करी, मेघकुमार देवताये सुगंधि पाणिनो
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